Edited By Utsav Singh,Updated: 21 Nov, 2024 05:06 PM
बंबई उच्च न्यायालय ने कानून का उल्लंघन करते हुए और अधिकारक्षेत्र में नहीं होने के बावजूद एक कैदी की पैरोल याचिका खारिज करने पर नासिक जेल के जेलर पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। कैदी श्रीहरि राजलिंगम गुंटुका की पैरोल अर्जी को इस वर्ष सितंबर में...
पश्चिम बंगाल : बंबई उच्च न्यायालय ने कानून का उल्लंघन करते हुए और अधिकारक्षेत्र में नहीं होने के बावजूद एक कैदी की पैरोल याचिका खारिज करने पर नासिक जेल के जेलर पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। कैदी श्रीहरि राजलिंगम गुंटुका की पैरोल अर्जी को इस वर्ष सितंबर में जेलर ने 2022 के सरकारी परिपत्र का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। परिपत्र में फरलो और पैरोल पर जेल से बाहर आने के समय के बीच डेढ़ साल का अंतराल अनिवार्य किया गया था।
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न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने 12 नवंबर के अपने आदेश में कहा कि अतीत में अदालतों ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इस तरह का प्रतिबंध जेल (बॉम्बे फरलो और पैरोल) नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि एक कैदी आपात स्थिति से निपटने के लिए पैरोल पर जेल से बाहर आने का हकदार है और यह शर्त लगाना कि उसे डेढ़ साल तक इंतजार करना होगा पूरी तरह से अनुचित है।
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उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ हमने पहले भी स्पष्ट रूप से अपना विचार व्यक्त किया है कि निकट संबंधी की गंभीर बीमारी, मकान ढहना, बाढ़, आग और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं अप्रत्याशित हैं और कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि यह कब आएंगी।'' पीठ ने कहा कि यह वास्तव में ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि जेल अधिकारियों ने अदालतों द्वारा पारित आदेशों को अनसुना कर दिया और अर्जी को खारिज करके अपने अनुसार काम किया। नासिक जेल अधीक्षक ने गुंटुका की पैरोल अर्जी को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह अर्जी फरलो पाने के बाद जेल लौटने के 21 दिनों के अंदर ही पेश की गई है। पीठ ने जेलर को गुंटुका के पैरोल पर पुनर्विचार करने तथा उसे संबंधित प्राधिकारी के पास भेजने का निर्देश दिया, जिसके पास निर्णय लेने का अधिकार है।