Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 14 Jan, 2025 11:01 PM
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने और चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग (ECI) को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा 1961 के चुनाव संचालन नियमों में किए गए संशोधनों पर विवाद गहरा गया...
नेशनल डेस्क: भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने और चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग (ECI) को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा साल 1961 के चुनाव संचालन नियमों में किए गए संशोधनों पर विवाद गहरा गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने इस संशोधन को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस मामले की सुनवाई कल यानी 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में होगी।
क्या है विवाद?
जयराम रमेश ने जो याचिका दायर की है, उसमें उन्होंने साल 1961 के चुनाव संचालन नियमों में हाल ही में किए गए संशोधनों को चुनौती दी है। इस संशोधन में चुनावी सामग्री, जैसे कि सीसीटीवी फुटेज, तक जनता की पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि जब तक चुनाव आयोग इसे आधिकारिक रूप से सूचीबद्ध न कर दे, तब तक चुनावी सामग्री को सार्वजनिक नहीं किया जा सकेगा। जयराम रमेश का कहना है कि इस संशोधन से चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता कम हो रही है और यह लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है। उनका यह भी कहना है कि इस तरह के महत्वपूर्ण नियमों में बदलाव बिना सार्वजनिक परामर्श के किया गया है, जो लोकतंत्र के खिलाफ है।
जयराम रमेश का बयान
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म "एक्स" पर इस मुद्दे पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने लिखा कि चुनाव आयोग को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह बिना किसी परामर्श के चुनावी नियमों में बदलाव करे। उनका कहना है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला है और इससे चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठ सकते हैं। रमेश ने यह भी जोड़ा कि यह बदलाव चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को भी नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे जनता का चुनावी अधिकार कमजोर हो सकता है।
क्या है चुनाव आयोग का तर्क?
चुनाव आयोग का तर्क है कि ये संशोधन चुनाव प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से किए गए हैं। हालांकि, विपक्षी दलों का आरोप है कि इन बदलावों से चुनावी प्रक्रिया की निगरानी करना कठिन हो जाएगा और आम जनता को चुनावी घटनाओं पर नजर रखने का अधिकार सीमित हो जाएगा।
जयराम रमेश का भविष्यवाणी क्या?
जयराम रमेश ने कहा कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को अधिक नियंत्रित और सीमित बनाने के प्रयास की तरह दिखता है। उन्होंने आशा जताई कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल देगा और इन नियमों को निष्पक्ष तरीके से पुनः विचार करेगा। रमेश ने कहा कि चुनाव आयोग को इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले जनता और राजनीतिक दलों से परामर्श करना चाहिए था।
उच्च शिक्षा क्षेत्र में भी बदलाव
इस बीच, जयराम रमेश ने भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में असिस्टेंट प्रोफेसर और कुलपतियों की नियुक्ति के लिए किए गए बदलावों पर भी कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि इन बदलावों का मकसद विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता को खत्म करना और शिक्षा क्षेत्र में आरएसएस के लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करना है।