जम्मू-कश्मीर : खतरनाक इलाकों से घटी सीटों की संख्या... जानिए चुनाव से पहले पिछले 10 सालों में कितना बदलाव आया

Edited By Mahima,Updated: 16 Aug, 2024 09:31 PM

jammu and kashmir number of seats from dangerous areas reduced

जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से एक अक्टूबर के बीच तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे और मतगणना चार अक्टूबर को होगी। निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को यह घोषणा की। पहले चरण के तहत 18 सितंबर को मतदान होगा जबकि दूसरे चरण के तहत 25 सितंबर को मतदान कराया जाएगा।

नैशनल डैस्क : जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से एक अक्टूबर के बीच तीन चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे और मतगणना चार अक्टूबर को होगी। निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को यह घोषणा की। पहले चरण के तहत 18 सितंबर को मतदान होगा जबकि दूसरे चरण के तहत 25 सितंबर को मतदान कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि आखिरी चरण का मतदान एक अक्टूबर को होगा और मतों की गिनती चार अक्टूबर को की जाएगी। साल 2019 में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में आइए जानें कि आखिर चुनाव से पहले पिछले 10 सालों में जम्मू-कश्मीर कितना बदल गया है।

खतरनाक इलाकों से घटी सीटों की संख्या
कुछ जिलों में विधानसभा सीटों की संख्या में कमी की गई है। बड़गाम में पहले 10 सीटें थीं, जो अब घटकर 7 रह गई हैं। श्रीनगर में भी सीटों की संख्या कम होकर 10 से 8 हो गई है। अनंतनाग में सीटों की संख्या 10 से घटाकर 7 कर दी गई है। उधमपुर में पहले 6 सीटें थीं, जो अब 4 रह गई हैं। जम्मू जिले में भी सीटों की संख्या 13 से घटकर 11 हो गई है। इन पांच जिलों में सीटों की कमी आतंकवादी गतिविधियों के कारण सुरक्षा स्थितियों को ध्यान में रखते हुए की गई है।

दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और प्रशासनिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। इस दिन जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। एक जम्मू-कश्मीर तो दूसरा लद्दाख। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा अब भी कार्यरत है, लेकिन इसके अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। पहले जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार की प्रमुख भूमिका थी, लेकिन अब उपराज्यपाल के पास अधिक शक्तियाँ हैं। उपराज्यपाल के पास पुलिस, भूमि और सार्वजनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रहेगा। चुनी हुई सरकार अब अन्य मामलों में निर्णय ले सकेगी, लेकिन उपराज्यपाल की मंजूरी अनिवार्य होगी। वहीं लद्दाख में विधानसभा नहीं है और यह सीधे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में संचालित होता है।

विधानसभा सीटों की संख्या में दिखा बदलाव
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। अब जम्मू-कश्मीर में कुल 114 सीटें निर्धारित की गई हैं, जिनमें 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लिए रिजर्व हैं। यदि इन 24 रिजर्व सीटों को हटा दिया जाए, तो कुल 90 विधानसभा सीटें बचती हैं, जो कि पहले की संख्या 83 से 7 सीटें अधिक हैं।

जम्मू क्षेत्र:
पहले: 37 सीटें
अब: 43 सीटें
बढ़ी: 6 सीटें

कश्मीर क्षेत्र:
पहले: 46 सीटें
अब: 47 सीटें
वृद्धि: 1 सीट

इस प्रकार, जम्मू क्षेत्र में 6 सीटें और कश्मीर क्षेत्र में 1 सीट की वृद्धि की गई है, जिससे कुल विधानसभा सीटों की संख्या 90 हो गई है। यह बदलाव क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बेहतर बनाने और जनता की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

पंडितों के लिए क्या ?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों और विस्थापित व्यक्तियों के लिए रिजर्व सीटों की व्यवस्था की गई है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दो सीटें कश्मीरी प्रवासियों के लिए रिजर्व रखी गई हैं। कश्मीरी प्रवासी उस व्यक्ति को माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और जिसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर्ड हो।

एक सीट पीओके से विस्थापित व्यक्ति के लिए रिजर्व की गई है। विस्थापित व्यक्ति वह होगा जो 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया हो। उपराज्यपाल तीन सदस्यों को नामित कर सकेंगे। दो कश्मीरी प्रवासी (जिसमें से एक महिला होगी) एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति। कुल मिलाकर, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 93 सीटें होंगी। हालांकि, चुनाव केवल 90 सीटों के लिए ही होंगे। यह प्रणाली पुडुचेरी के फॉर्मूले के समान है, जहां कुल 33 विधानसभा सीटें हैं। 30 सीटें जनता द्वारा चुनी जाती हैं। 3 सीटें केंद्र सरकार द्वारा नामित की जाती हैं।

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