जसवंत सिंह गिल को मरणोपरांत मिलेगा 'कोहिनूर-ए-हिंद' अवॉर्ड

Edited By Parminder Kaur,Updated: 20 Nov, 2024 11:44 AM

jaswant singh gill will receive the  kohinoor e hind  award posthumously

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और इसरो के अध्यक्ष डॉ. किरण कुमार की मौजूदगी में 26 नवंबर, 2024 को बेंगलुरु में आयोजित एक विशेष समारोह में 'मिशन रानीगंज' फिल्म के असल हीरो गुरुनगरी के इंजीनियर जसवंत सिंह गिल को मरणोपरांत 'कोहिनूर-ए-हिंद' अवॉर्ड...

नेशनल डेस्क. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और इसरो के अध्यक्ष डॉ. किरण कुमार की मौजूदगी में 26 नवंबर, 2024 को बेंगलुरु में आयोजित एक विशेष समारोह में 'मिशन रानीगंज' फिल्म के असल हीरो गुरुनगरी के इंजीनियर जसवंत सिंह गिल को मरणोपरांत 'कोहिनूर-ए-हिंद' अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। यह सम्मान गिल के बेटे डॉ. जसप्रीत सिंह गिल को मिलेगा।

मदर इंडिया केयर ट्रस्ट द्वारा सम्मान

डॉ. सरप्रीत सिंह गिल ने जानकारी दी कि यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड मदर इंडिया केयर ट्रस्ट द्वारा दिया जा रहा है। यह ट्रस्ट अपने 10वें स्थापना वर्ष के मौके पर पूरे देश से 10 लोगों का चयन कर सम्मानित करेगा। इन अवॉर्ड्स में सबसे बड़ा अवॉर्ड 'कोहिनूर-ए-हिंद' है, जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर 'वतन का हीरा' और 'रतन-ए-वतन' दिए जाएंगे। ज्यूरी ने उन लोगों को चुना है, जिन्होंने मुश्किल समय में मानवता की सेवा की।

समारोह में कई प्रमुख हस्तियां शामिल होंगी, जिनमें पूर्व केंद्रीय सेहत सचिव वीएम कटोच, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एमएन बैंकटाचलिया, ब्रिगेडियर दिलीप कुमार, ब्रिगेडियर ध्यालन और मेजर जनरल एसपी यादव जैसे लोग शामिल होंगे।

जसवंत सिंह गिल की बहादुरी

जसवंत सिंह गिल को 1991 में उनके अद्वितीय साहस के लिए सर्वोत्तम रक्षा पदक से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिला था। गिल की तकनीकी खोजों को माइनिंग की पढ़ाई में अब शामिल किया गया है। उनकी बहादुरी पर आधारित फिल्म 'मिशन रानीगंज' 2023 में बनाई गई थी, जिसमें अक्षय कुमार ने गिल का किरदार निभाया था। इस फिल्म की रिलीज से पहले ही गिल का निधन 26 नवंबर, 2019 को हो गया था।

रानीगंज खान हादसा और गिल की बहादुरी

गिल की सबसे बड़ी बहादुरी 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज खदान में हुई एक घटना के दौरान सामने आई। वहां एक खदान में 350 फीट नीचे 65 मजदूर फंसे हुए थे और उन्हें बाहर निकालने की सभी कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं। तब गिल ने खुद खदान में जाने का साहस दिखाया। हालांकि, सरकार ने उनकी योजना को खारिज कर दिया, लेकिन गिल ने हार नहीं मानी और अपनी योजना के अनुसार एक लोहे का कैप्सूल तैयार किया। इसके जरिए वह खुद खदान के अंदर गए और एक-एक करके सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला। इस साहसिक कार्य ने उन्हें देशभर में सम्मानित किया।

याद में स्थापित की गई प्रतिमा और अवॉर्ड

गिल के योगदान को याद करते हुए अमृतसर में मेडिकल कॉलेज के पास एक चौक का नाम उनके नाम पर रखा गया है और वहां रोटरी क्लब द्वारा उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया गया है।

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