Edited By Parminder Kaur,Updated: 16 Sep, 2024 09:55 AM
जसविंदर सिंह रंधावा नंगल सोहल गांव के 65 वर्षीय किसान हैं। उन्होंने 35 साल विदेश में बिताए। अब वे अपने गांव लौटकर आर्थिक रूप से कमजोर और बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा और परवरिश देने का काम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी इस सेवा को 'आनंद जीवन' नाम दिया...
नेशनल डेस्क. जसविंदर सिंह रंधावा नंगल सोहल गांव के 65 वर्षीय किसान हैं। उन्होंने 35 साल विदेश में बिताए। अब वे अपने गांव लौटकर आर्थिक रूप से कमजोर और बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा और परवरिश देने का काम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी इस सेवा को 'आनंद जीवन' नाम दिया है और इसके लिए एक संस्था बनाई है।
रंधावा की संस्था ने अब तक 24 बच्चों को वकील, इंजीनियर, शिक्षक और डॉक्टर बना दिया है। इसके अलावा 12 लड़कियां और 3 लड़के प्राइवेट जॉब्स भी कर रहे हैं। रंधावा बताते हैं कि उनकी संस्था में ऐसे बच्चों को जगह दी जाती है, जिनके मां-बाप नहीं हैं, या जिनके मां-बाप पालन-पोषण में असमर्थ हैं। वर्तमान में उनकी संस्था में 70 बच्चे रह रहे हैं। संस्था बच्चों की पढ़ाई, स्टेशनरी और अन्य जरूरी खर्चे का पूरा बोझ उठाती है। शुरू में उन्होंने सिर्फ 5 बेटियों की पढ़ाई की योजना बनाई थी।
गांव की दुर्दशा देखकर दिल टूट गया
रंधावा ने 1979 में अरब देशों में काम शुरू किया और बाद में जर्मनी चले गए। वहां उनकी मुलाकात जर्मन महिला निकोला से हुई और दोनों ने विवाह किया। उनकी पत्नी शिक्षिका हैं और उनका एक बेटा जनदेवजीत सिंह है, जो आज एनवायर्नमेंट इंजीनियर है। रंधावा की पत्नी ने गांव देखने की इच्छा जताई और 2014 में वे परिवार सहित गांव लौटे।
गांव की स्थिति देखकर उनका दिल टूट गया, जब वे गांव छोड़कर गए थे, तब गांव में बहुत कुछ अच्छा था, लेकिन अब वहां नशा, बेरोजगारी, अनपढ़ता और गरीबी बढ़ गई थी। लोगों के बीच पहले जैसा प्रेम और संबंध नहीं रहे थे। यह सब देखकर उन्होंने ठान लिया कि वे गांव और गांव वालों के लिए कुछ करेंगे। इस नेक काम में उनकी पत्नी ने भी पूरा सहयोग दिया और उन्होंने अपने घर को आश्रम में बदल दिया।