Edited By Rahul Singh,Updated: 10 Nov, 2024 11:57 AM
स्टारलिंक मौजूदा वक्त में 36 देशों में मौजूद है। इसमें अमेरिका का नाम प्रमुखता से आता है। कंपनी 2025 तक ज्यादा से ज्यादा देशों तक पहुंचना चाहती है। भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन शुरू हो चुका है। कंपनी जल्द ही भारत में सैटेलाइट सर्विस ऑफर कर...
नई दिल्ली। मोबाइल यूजर्स के लिए अच्छी खबर सामने आई है। एलन मस्क की स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस दुनियाभर में अपने पैर पसार रही है और अब भारतीय यूजर्स भी स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस का लुफ्त उठाने का इंतजार कर रहे हैं। एलन मस्क की StarLink ने अफ्रीका में सफल प्रक्षेपण के बाद भारत में प्रक्षेपण में रुचि व्यक्त की है, जहां स्थानीय कंपनियां कम ब्रॉडबैंड कीमतों से परेशान थीं और उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए सरकार के दृष्टिकोण का समर्थन किया है। वहीं भारत की दो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियां जियो-एयरटेल के सामने अब स्टारलिंक बड़ी चुनौती नजर आ रहा है। पिछले कुछ समय से जियो-एयरटेल की दरें काफी अधिक बढ़ी हैं, जिसने अपने ग्राहकों को निराश किया है, लेकिन स्टारलिंक के चलते अब इनको दरें घटानी पड़ सकती हैं।
क्यों घटाना पड़ सकती हैं दरें?
दरअसल, स्टारलिंक मौजूदा वक्त में 36 देशों में मौजूद है। इसमें अमेरिका का नाम प्रमुखता से आता है। कंपनी 2025 तक ज्यादा से ज्यादा देशों तक पहुंचना चाहती है। भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन शुरू हो चुका है। कंपनी जल्द ही भारत में सैटेलाइट सर्विस ऑफर कर सकती है। स्टारलिंग की कीमत 110 प्रति माह डॉलर है, जबकि हार्डवेयर के लिए 599 डॉलर एक बार देना पड़ सकता है। अगर भारत की बात करें, तो इसकी कीमत 7000 रुपए हो सकती है। साथ ही इंस्टॉलेशन चार्ज अलग से देना पड़ सकता है। स्टारलिंक की ओर से कॉमर्शियल और पर्सनल यूज के लिए अलग-अलग प्लान पेश किए जाते हैं, जो यूजर्स को अपनी ओर खींच सकते हैं। ऐसे में जियो-एयरटेल को अगर अपने यूजर्स बनाए रखने हैं तो उन्हें अपनी दरें कम करना पड़ेंगी।
क्या है जियो और एयरटेल की मांग?
जियो और एयरटेल नीलामी के जरिए स्पेक्ट्रम के आवंटन पर जोर दे रही थीं। मुकेश अंबानी की जियो और सुनील मित्तल के स्वामित्व वाली कंपनी एयरटेल सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेक्टर में भी अपनी हिस्सेदारी के लिए होड़ में हैं। इनका मानना है कि नीलामी के जरिए पुराने ऑपरेटर्स को भी समान अवसर उपलब्ध हो सकेंगे, जो स्पेक्ट्रम खरीदते हैं और टेलीकॉम टावर जैसे बुनियादी ढ़ांचे स्थापित करते हैं।
भारत में कहां-कहां हो सकता है इसका फायदा?
आजकल हम लोग जिस फोन या मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। उसका संचालन टेरेस्टियल स्पेक्ट्रम के जरिए किया जाता है। इस स्पेक्ट्रम की नीलामी सरकार करती है। इस स्पेक्ट्रम पर सरकार का अधिकार होता है। इसमें आप्टिकल फाइबर या मोबाइल टॉवर के जरिए तरंगों का संचार होता है.वहीं इसके उलट सैटेलाइट स्पेक्ट्रम में एक छतरी के जरिए इंटरनेट की सर्विस दी जाएगी। इससे पहाड़ों, जंगलों और दूर-दराज के इलाकों तक इंटरनेट पहुंचाने में बहुत लाभदायक होगा, जहां अभी ऑप्टिकल फाइबर का जाल बिछाना या मोबाइल टावर लगाना मुश्किल काम है।
स्टारलिंक की इंटरनेट स्पीड:
डाउनलोड स्पीड: स्टारलिंक की औसत डाउनलोड स्पीड 160 Mbps (मेगाबिट प्रति सेकंड) तक होती है। यह स्पीड काफी तेज है और आमतौर पर वीडियो स्ट्रीमिंग, गेमिंग, और बड़े फाइल ट्रांसफर के लिए उपयुक्त है।
अलग-अलग देशों में डाउनलोड स्पीड:
अमेरिका: 91 Mbps
कनाडा: 97 Mbps
ऑस्ट्रेलिया: 124 Mbps
इन देशों में स्पीड का फर्क उपग्रहों की स्थिति, उपयोगकर्ता संख्या और नेटवर्क ट्रैफिक जैसी वजहों से हो सकता है। लेकिन, औसतन, यह स्पीड काफ़ी उच्च होती है।
अपलोड स्पीड: स्टारलिंक की औसत अपलोड स्पीड 16.29 Mbps है। यह स्पीड भी वीडियो कॉल्स, क्लाउड स्टोरेज, और छोटे-से-मध्यम फाइल ट्रांसफर के लिए पर्याप्त है।
लेटेंसी: स्टारलिंक की लेटेंसी (response time) 20 मिलीसेकंड के करीब होती है, जो कि बहुत कम है। यह पारंपरिक उपग्रह इंटरनेट सेवाओं की तुलना में कहीं अधिक बेहतर है, क्योंकि पारंपरिक उपग्रहों की लेटेंसी अक्सर 600 मिलीसेकंड या उससे अधिक होती है। कम लेटेंसी का मतलब है कि ऑनलाइन गेमिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, और लाइव स्ट्रीमिंग जैसी सेवाओं में बेहतर अनुभव मिलेगा।