Edited By Rohini Oberoi,Updated: 01 Feb, 2025 11:05 AM
कर्नाटक सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को इच्छा मृत्यु का अधिकार दे दिया है। यह निर्णय उन मरीजों के लिए लिया गया है जिनके स्वास्थ्य में सुधार की संभावना नहीं रह गई है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आदेश...
नेशनल डेस्क। कर्नाटक सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को इच्छा मृत्यु का अधिकार दे दिया है। यह निर्णय उन मरीजों के लिए लिया गया है जिनके स्वास्थ्य में सुधार की संभावना नहीं रह गई है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आदेश के अनुसार यह कदम सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत उठाया गया है।
स्वास्थ्य मंत्री का बयान
कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडूराव ने शुक्रवार को यह आदेश जारी किया। उन्होंने कहा कि इस फैसले से असाध्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को सम्मानजनक मृत्यु प्राप्त हो सकेगी। स्वास्थ्य विभाग ने इसके तहत एक नया दस्तावेज भी जारी किया है जिसे अग्रिम मेडिकल निर्देश (एएमडी) या लिविंग विल (जीवनकालीन वसीयत) कहा जाता है। इस दस्तावेज में मरीज भविष्य में अपने इलाज के बारे में अपनी इच्छाएं दर्ज करा सकते हैं।
लिविंग विल क्या है?
लिविंग विल में मरीज यह तय कर सकते हैं कि मरणासन्न अवस्था में या यदि वे निर्णय लेने की स्थिति में न हों तो उनका इलाज कैसे किया जाए। इसके तहत अगर कोई मरीज भविष्य में मृत्यु के करीब पहुंच जाता है और वह अपना निर्णय खुद नहीं ले सकता तो वह दो अन्य व्यक्तियों को नामित कर सकता है जो उसकी ओर से निर्णय लेंगे। इस दस्तावेज़ के जरिए मरीज अपनी इच्छाओं को पहले से स्पष्ट कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
कर्नाटक सरकार ने इस कदम के पीछे सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय का हवाला दिया है जिसमें पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार भी शामिल है। इस फैसले के आधार पर ही कर्नाटक सरकार ने यह आदेश जारी किया है।
पैसिव यूथेनेशिया की अनुमति
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि लिविंग विल की अनुमति केवल पैसिव यूथेनेशिया (इच्छामृत्यु) के मामलों में ही दी जाएगी। पैसिव यूथेनेशिया में व्यक्ति की इच्छामृत्यु की इच्छा को मान्यता दी जाती है लेकिन इसमें किसी प्रकार की सक्रिय सहायता नहीं दी जाती। इसका मतलब यह है कि डॉक्टर मरीज की जान बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाएंगे जैसे जीवन रक्षक दवाइयों का उपयोग न करना या वेंटिलेटर हटाना।
एक्टिव यूथेनेशिया से अलग
इसके विपरीत एक्टिव यूथेनेशिया में मरीज को मृत्यु का चुनाव करने में मदद की जाती है। इसमें डॉक्टर मरीज को सक्रिय रूप से मौत की ओर ले जाने में मदद करते हैं जैसे कि उन्हें जहरीला इंजेक्शन देना या पेन किलर्स का ओवरडोज़ देना। कर्नाटक सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि केवल पैसिव यूथेनेशिया की अनुमति दी जाएगी एक्टिव यूथेनेशिया की नहीं।
अंत में कहा जा सकता है कि कर्नाटक सरकार का यह कदम गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए एक बड़ा राहत भरा कदम साबित हो सकता है क्योंकि अब उन्हें गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार मिलेगा। इस फैसले के तहत मरीज अपनी इच्छा के अनुसार जीवन के अंतिम समय में इलाज के तरीके का चयन कर सकते हैं जिससे उन्हें सम्मानजनक मृत्यु मिल सकेगी।