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कर्नाटका MUDA मामला: सीएम सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा, जानिए कैसे फंसा मुख्यमंत्री का परिवार

Edited By Mahima,Updated: 17 Aug, 2024 02:11 PM

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कर्नाटका में मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से जुड़ा मामला वर्तमान में राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ इस मामले में गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

नेशनल डेस्क: कर्नाटका में मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से जुड़ा मामला वर्तमान में राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ इस मामले में गंभीर आरोप लगाए गए हैं। हाल ही में राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इस मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।

MUDA क्या है?
मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) का मुख्य उद्देश्य मैसूर शहर में शहरी विकास को बढ़ावा देना, बुनियादी ढांचे का निर्माण करना और लोगों को सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध कराना है। 2009 में, MUDA ने एक योजना पेश की थी जिसके तहत भूमि अधिग्रहण के मामले में प्रभावित लोगों को MUDA द्वारा विकसित भूमि के प्लॉट दिए जाते थे। इस योजना को 2020 में बंद कर दिया गया, लेकिन MUDA ने इसका कार्य जारी रखा।

मुख्यमंत्री की पत्नी पर आरोप
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी, पार्वती, को 2021 में MUDA द्वारा एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। आरोप है कि इन साइटों का आवंटन नियमों के खिलाफ था और यह अनियमितता की श्रेणी में आता है। पार्वती की केसारे गांव की जमीन को MUDA ने अधिग्रहित किया और इसके बदले में उन्हें विजयनगर में अधिक मूल्य वाली साइटें दी गईं। विपक्ष का दावा है कि इन साइटों का बाजार मूल्य केसारे में मूल जमीन से कहीं अधिक था, जिससे मुआवजे की वैधता पर सवाल उठते हैं।

सीएम सिद्धारमैया का जवाब
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि यह आवंटन भाजपा सरकार के दौरान किया गया था और जमीन का मूल्य केसारे की मूल भूमि से कम है। उन्होंने कहा कि यदि कोई कानून का उल्लंघन साबित हो, तो उसे बताए और वे आवश्यक कदम उठाएंगे।

कानूनी कार्रवाई और राज्य सरकार की भूमिका
इस मामले में मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी और अन्य के खिलाफ दो निजी शिकायतें दायर की गई हैं, जिनकी सुनवाई विशेष अदालत द्वारा की जा रही है। न्यायाधीश ने शिकायत की स्वीकार्यता पर 20 अगस्त, 2024 तक आदेश सुरक्षित रख लिया है। साथ ही, राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया है, जो कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पीएन देसाई की अध्यक्षता में काम करेगा। आयोग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए छह महीने का समय दिया गया है।

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