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पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में कश्मीर के अखबारों ने पहला पन्ना रखा काला, जताया दुख और गुस्सा

Edited By Harman Kaur,Updated: 23 Apr, 2025 11:43 AM

kashmir newspapers kept the front page black in protest against pahalgam

जम्मू कश्मीर के पहलगाम शहर के निकट ‘मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर पर्यटन स्थल बैसरन में मंगलवार को हुए नृशंस आतंकवादी हमले के विरोध में बुधवार को कश्मीर के कई अखबारों ने अपना पहला पन्ना काला रखा। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकतर...

नेशनल डेस्क: जम्मू कश्मीर के पहलगाम शहर के निकट ‘मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर पर्यटन स्थल बैसरन में मंगलवार को हुए नृशंस आतंकवादी हमले के विरोध में बुधवार को कश्मीर के कई अखबारों ने अपना पहला पन्ना काला रखा। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकतर पर्यटक थे। हमले के विरोध में अधिकतर अखबारों ने सफेद या लाल रंग में प्रभावी शीर्षक दिए तथा एकजुटता और दुःख का सार्वजनिक प्रदर्शन किया, जो इस अमानवीय कृत्य पर निवासियों और मीडिया द्वारा महसूस किए गए सामूहिक दुःख का प्रतीक था।

‘ग्रेटर कश्मीर', ‘राइजिंग कश्मीर', ‘कश्मीर उजमा', ‘आफ़ताब' और ‘तैमील इरशाद' सहित प्रमुख अंग्रेजी एवं उर्दू के दैनिकों द्वारा अपने अपने प्रारूप में किया गया यह बदलाव दशकों से इस क्षेत्र में व्याप्त हिंसा की एक याद दिलाता है। प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ‘ग्रेटर कश्मीर' ने काले लेआउट पर सफेद रंग में शीर्षक दिया, ‘‘ग्रुसम: कश्मीर गटेड, कश्मीरीज ग्रीविंग'' (भयावह: कश्मीर तबाह, कश्मीरी शोक में हैं)''। उसके बाद लाल रंग में उपशीर्षक दिया गया ‘‘26 किल्ड इन डेडली टेरर अटैक इन पहलगाम'' (पहलगाम में घातक आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए)। अखबार के पहले पन्ने पर संपादकीय का शीर्षक था, ‘‘द मैसकर इन द मेडो - प्रोटेक्ट कश्मीर्स सोल'' (घास के मैदान में नरसंहार - कश्मीर की आत्मा की रक्षा करें)।

'कश्मीर की आत्मा जाहिर तौर पर इस क्रूरता की निंदा करती है'
 संपादकीय में कहा गया है कि हमले के कारण जम्मू कश्मीर में मानो मनहूसियत छा गई है। यह एक ऐसा क्षेत्र था जो ‘‘धरती पर स्वर्ग'' की अपनी विरासत को फिर से जिंदा करने का प्रयास कर रहा था। संपादकीय में कहा गया है, ‘‘यह जघन्य कृत्य न केवल बेकसूर लोगों पर हमला है, बल्कि कश्मीर की पहचान और मूल्यों - इसकी आतिथ्य, इसकी अर्थव्यवस्था और इसके नाजुक अमन चैन को निशाना बनाकर जानबूझकर किया गया हमला है। कश्मीर की आत्मा जाहिर तौर पर इस क्रूरता की निंदा करती है और पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करती है, जो खूबसूरती की तलाश में आए, लेकिन त्रासदी पाई।'' अखबार ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि उन जगहों को भी निशाना बना सकते हैं, जहां यातायात की भीड़ रहती है या वैसी जगहें जहां सिर्फ पैदल या खच्चर की मदद से पहुंचा जा सकता है।

अखबार ने एजेंसियों के बीच अधिक खुफिया जानकारी और मजबूत समन्वय की आवश्यकता का संकेत देते हुए अधिक से अधिक सक्रिय उपायों, सतर्कता बढ़ाने, समुदायों के बीच जुड़ाव और आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया, जो इस तरह की भयावहता को फिर से होने से रोकने के लिए अनिवार्य हैं। अखबार ने कहा, ‘‘कश्मीर के लोगों ने बहुत लंबे समय तक हिंसा को सहन किया है, फिर भी वे टूटे नहीं हैं। इस हमले से हमें बंटना नहीं है, बल्कि हमें आतंक के खिलाफ एकजुट होना है। हम सरकार, सुरक्षा बलों, नागरिक संगठन और आम नागरिकों, सभी से एक सामूहिक मोर्चा बनाने का आग्रह करते हैं।'' संपादकीय में कहा गया है, ‘‘केवल दृढ़ संकल्प से ही हम अपनी सरजमीं के आने वाले कल की रक्षा कर सकते हैं, यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि पहलगाम के ये मैदान गोलियों की आवाज से नहीं, बल्कि हंसी से गूंजें और कश्मीर अमन और खुशहाली का प्रतीक बना रहे।''

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