'मैं अब पदक का रंग बदलने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा', योगेश कथुनिया ने डिस्कस थ्रो में लगातार दूसरी बार जीता सिल्वर

Edited By Harman Kaur,Updated: 02 Sep, 2024 05:23 PM

kathuniya won silver for the second consecutive time

पैरालंपिक खेलों में लगातार दूसरी बार रजत पदक जीतने वाले भारतीय चक्का फेंक खिलाड़ी योगेश कथुनिया अपने प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कई प्रमुख टूर्नामेंटों में दूसरे स्थान की बाधा को पार नहीं कर पा रहे हैं।

नेशनल डेस्क: पैरालंपिक खेलों में लगातार दूसरी बार रजत पदक जीतने वाले भारतीय चक्का फेंक खिलाड़ी योगेश कथुनिया अपने प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कई प्रमुख टूर्नामेंटों में दूसरे स्थान की बाधा को पार नहीं कर पा रहे हैं।

'मुझे और अधिक मेहनत करने की जरूरत है, क्योंकि...'
हरियाणा के 27 वर्षीय खिलाड़ी ने पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों के एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ सोमवार को यहां रजत पदक जीता। कथुनिया अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने अगले बड़े टूर्नामेंट में अपने पदक का रंग बेहतर करने का वादा किया। कथुनिया ने मैच के बाद यहां कहा, ‘‘प्रतियोगिता ठीक रही, मुझे रजत पदक मिला। मैं अब पदक का रंग बदलने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा।'' उन्होंने कहा, ‘‘ पिछले कुछ समय से मैं केवल रजत जीत रहा हूं, चाहे वह तोक्यो (पैरालंपिक) हो या आज, विश्व चैंपियनशिप या एशियाई खेल..हर जगह मैं रजत जीत रहा हूं। गाड़ी अटक गई है। मुझे लगता है कि मुझे और अधिक मेहनत करने की जरूरत है। अब मुझे स्वर्ण पदक चाहिये।'' तोक्यो पैरालंपिक से कथुनिया ने बड़े आयोजनों में लगातार पांचवीं बार रजत पदक जीता है।

उन्होंने 2023, 2024 विश्व चैंपियनशिप के साथ-साथ पिछले साल एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीते थे। पैरालंपिक के साथ उन्होंने 2023, 2024 विश्व चैंपियनशिप और पिछले साल एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीते थे। कथुनिया नौ साल की उम्र में ‘गुइलेन-बैरी सिंड्रोम' से ग्रसित हो गये थे। यह एक दुर्लभ बीमारी है, जिसमें शरीर के अंगों में सुन्नता, झनझनाहट के साथ मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और बाद में यह पक्षाघात (पैरालिसिस) का कारण बनता है। वह बचपन में व्हीलचेयर की मदद से चलते थे लेकिन अपनी मां मीना देवी की मदद से वह बाधाओं पर काबू पाने में सफल रहे। उनकी मां ने फिजियोथेरेपी सीखी ताकि वह अपने बेटे को फिर से चलने में मदद कर सके।

कथुनिया के पिता भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। कथुनिया ने दिल्ली के प्रतिष्ठित किरोड़ीमल कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक किया है। कथुनिया ने तोक्यो पैरालंपिक में 44.38 मीटर के बेहतर प्रयास के साथ रजत पदक जीता था। उनका सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन 48 मीटर का है जो इंडिया ओपन में आया था। इंडिया ओपन हालांकि विश्व पैरा एथलेटिक्स के अंतर्गत नहीं आता है। कथुनिया ने कहा, ‘‘ आज मेरा दिन नहीं था, मेरा प्रदर्शन लगातार अच्छा रहता है लेकिन आज मुझे उतनी खुशी महसूस नहीं हो रही है। मेरा परिवार खुश होगा, वे जश्न मना रहे होंगे‘‘ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे कोच ने मेरी बहुत मदद की है। मैंने प्रशिक्षण में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन दुर्भाग्य से मैं आज इसे दोहरा नहीं सका।''  एफ 56 वर्ग में भाग लेने वाले खिलाड़ी बैठ कर प्रतिस्पर्धा करते है। इस वर्ग में ऐसे खिलाड़ी होते है जिनके शरीर के निचले हिस्से में विकार होता है और मांसपेशियां कमजोर होती है।

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