Edited By Parminder Kaur,Updated: 09 Nov, 2024 04:47 PM
केरल उच्च न्यायालय ने 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की गर्भपात की याचिका को खारिज करने के एकल न्यायाधीश के फैसले को पलट दिया है। अदालत ने पीड़िता को 26 सप्ताह से अधिक के गर्भ को चिकित्सीय तरीके से समाप्त करने की अनुमति दी है। मुख्य न्यायाधीश नितिन...
नेशनल डेस्क. केरल उच्च न्यायालय ने 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की गर्भपात की याचिका को खारिज करने के एकल न्यायाधीश के फैसले को पलट दिया है। अदालत ने पीड़िता को 26 सप्ताह से अधिक के गर्भ को चिकित्सीय तरीके से समाप्त करने की अनुमति दी है। मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस मनु की पीठ ने 7 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मेडिकल बोर्ड ने इस पर अपनी रिपोर्ट दी थी कि पीड़िता मानसिक आघात का शिकार हो सकती है, लेकिन एकल न्यायाधीश की पीठ ने इस पर ध्यान नहीं दिया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि एकल न्यायाधीश के आदेश में यह भी माना गया कि बोर्ड में किसी मनोचिकित्सक का सुझाव नहीं था।
मनोचिकित्सक की जांच जरूरी
दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि एकल पीठ को पीड़िता की मानसिक स्थिति का आकलन करने के लिए मनोचिकित्सक से जांच करानी चाहिए थी। न्यायमूर्ति जामदार और न्यायमूर्ति मनु ने कहा कि एकल पीठ को इस मामले में मनोचिकित्सक से रिपोर्ट लेकर निर्णय लेने का आदेश देना चाहिए था, जो इसने नहीं किया। अदालत ने नाबालिग की मां द्वारा दायर अपील पर एकल न्यायाधीश का आदेश खारिज करते हुए कहा, "दुर्भाग्यवश, ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया।"
मनोचिकित्सक की रिपोर्ट में पुष्टि
सात नवंबर को मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने निर्देश दिया कि पीड़िता की मानसिक स्थिति के बारे में मनोचिकित्सक से एक रिपोर्ट पेश की जाए। मनोचिकित्सक की रिपोर्ट में यह पुष्टि की गई कि लड़की अवसादग्रस्त प्रतिक्रिया का अनुभव कर रही है, जिससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। इस रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने गर्भपात की अनुमति दे दी।
अदालत ने कहा कि मेडिकल बोर्ड और मनोचिकित्सक की राय के अनुसार नाबालिग के गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त (एमटीपी) किया जाएगा। इसके लिए आवश्यक प्रक्रिया सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल द्वारा पूरी की जाएगी। इसके अलावा अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि चूंकि प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है, इसलिए भ्रूण के ऊतकों और रक्त के नमूने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और अन्य परीक्षण के लिए संरक्षित किए जाएं। यदि भ्रूण जीवित पैदा होता है, तो अस्पताल को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिशु के जीवन को बचाने के लिए सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हों।
एकल पीठ का फैसला
इससे पहले 30 अक्टूबर को एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा था कि पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में यह नहीं पाया गया कि भ्रूण में कोई समस्या है या यह आशंका जताई गई कि गर्भ को जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर होगा। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को पलटते हुए गर्भपात की अनुमति दे दी।