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दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ने वाले दो प्रमुख भारतीय थे मलयाली मूल के, पढ़ें अनसुनी कहानी

Edited By rajesh kumar,Updated: 12 Mar, 2025 03:52 PM

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केरल के कुंडलास्सेरी और वझक्कुलम जैसे दूरदराज़ के गांवों के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह भी जानते होंगे कि इन गांवों का संबंध दक्षिण अफ्रीका के महान नेता नेल्सन मंडेला और उनके अपार्थेड विरोधी आंदोलन से रहा है।

नई दिल्ली: केरल के कुंडलास्सेरी और वझक्कुलम जैसे दूरदराज़ के गांवों के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह भी जानते होंगे कि इन गांवों का संबंध दक्षिण अफ्रीका के महान नेता नेल्सन मंडेला और उनके अपार्थेड विरोधी आंदोलन से रहा है।

महात्मा गांधी और कई अन्य भारतीयों का योगदान दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी संघर्ष में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। लेकिन कुछ मलयाली नेताओं की इस ऐतिहासिक लड़ाई में भूमिका अब तक लगभग अज्ञात रही। वरिष्ठ पत्रकार जी. शहीद की नई किताब "मंडेलायोडोप्पम पोराडिया रंडु मलयालिकल" (मथृभूमि बुक्स, 2024) ने इस रहस्य को उजागर किया है। यह किताब मंडेला के दो करीबी साथियों, बिली नायर और पॉल जोसेफ, की कहानी बताती है, जो दक्षिण अफ्रीका में जन्मे और पले-बढ़े, लेकिन उनके परिवार की जड़ें केरल से जुड़ी थीं।

मलयाली संघर्षवीर: बिली नायर और पॉल जोसेफ
बिली नायर और पॉल जोसेफ भारतीय प्रवासी परिवारों में जन्मे थे। दोनों ने दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। नायर को 20 वर्षों तक कुख्यात रोबेन आइलैंड जेल में कैद रखा गया, जहाँ मंडेला भी क़ैद थे। 2008 में 79 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ। वहीं, जोसेफ अब 94 वर्ष के हैं और लंदन में रहते हैं।

दोनों नेता अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC), साउथ अफ्रीकन इंडियन कांग्रेस (SAIC) और साउथ अफ्रीकन कम्युनिस्ट पार्टी (SACP) के सदस्य थे। वे ANC की सशस्त्र विंग uMkhonto weSizwe (MK) में भी सक्रिय थे। 1960 में शार्पविल हत्याकांड में पुलिस ने 69 निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी थी, जिसके बाद ANC ने शांतिपूर्ण विरोध छोड़कर सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया। नायर MK के नेटाल प्रांत के कमांडर थे।

केरल से दक्षिण अफ्रीका तक का सफर
बिली नायर के पिता कृष्णन नायर केरल के पलक्कड़ जिले के कुंडलास्सेरी गांव से थे और 1920 के दशक में बतौर मजदूर दक्षिण अफ्रीका गए थे। उनकी माँ पार्वती तमिलनाडु के पुदुकोट्टई की थीं। पॉल जोसेफ की माँ अन्नम्मा केरल के वझक्कुलम गाँव से थीं। वे बचपन में अपने रिश्तेदारों के साथ दक्षिण अफ्रीका चली गई थीं। उनके पिता वीरासामी पुदुचेरी से थे और जोहान्सबर्ग में काम करते थे।

नेल्सन मंडेला के करीबी सहयोगी
नायर और जोसेफ उन 21 भारतीय नेताओं में शामिल थे जिन्हें 1956 के "देशद्रोह मुकदमे" में मंडेला के साथ आरोपी बनाया गया था। उन पर सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश का आरोप लगा, लेकिन अदालत ने 1961 में उन्हें बरी कर दिया। नायर को 1964 में ANC और SACP पर प्रतिबंध लगने के बाद मंडेला और अन्य नेताओं के साथ रोबेन आइलैंड जेल में कैद कर लिया गया। वहाँ नायर और मंडेला ने एक-दूसरे को "थंपी" (छोटा भाई) और "अण्णा" (बड़ा भाई) कहकर बुलाया। पॉल जोसेफ भी ANC और MK में सक्रिय रहे और कई बार गिरफ्तार हुए। उन्होंने 1960 के दशक में लंदन भागकर वहाँ से रंगभेद विरोधी आंदोलन जारी रखा।

शोध से सामने आई अनसुनी कहानियाँ
पत्रकार जी. शहीद ने 2019 में इन नेताओं पर शोध शुरू किया। जब उनके एक मित्र ने रोबेन आइलैंड जेल संग्रहालय में "बिली नायर" का नाम देखा, तो यह सवाल उठा कि क्या नायर का संबंध केरल से था। शहीद ने कई राजनयिकों, इतिहासकारों और ANC के पुराने नेताओं से संपर्क किया, लेकिन किसी को नायर के मलयाली मूल की जानकारी नहीं थी। आखिरकार, नायर की 94 वर्षीय बहन कल्याणी नायर ने पुष्टि की कि उनके पिता पलक्कड़ के कुंडलास्सेरी के रहने वाले थे। पॉल जोसेफ की केरल जड़ों की पुष्टि ब्रिटिश पत्रकार डेविड जेम्स स्मिथ और लंदन के लूटन शहर के पूर्व मेयर फिलिप अब्राहम ने की। जोसेफ ने 1980 में एक बार वझक्कुलम का दौरा भी किया था।

संघर्ष और विरासत
नायर की पत्नी एल्सी एक अश्वेत ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने उनके जेल में रहने के दौरान पुलिस की प्रताड़ना सही। उनकी बेटी अब लंदन में रहती हैं। जोसेफ लंदन में बसने के बाद रंगभेद विरोधी अभियानों में सक्रिय रहे। 2008 में मंडेला ने उनके लंदन स्थित घर जाकर उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं। शहीद ने 2023 में जोसेफ के रिश्तेदारों को वझक्कुलम में खोज निकाला। वहाँ उनके परिवार का घर "अफ्रीका हाउस" कहलाता था, क्योंकि अन्नम्मा के रिश्तेदार अक्सर दक्षिण अफ्रीका आते-जाते रहते थे।

शहीद का योगदान और मलयाली गौरव
शहीद की पुस्तक ने केरल के इन दो अनसुने नायकों की विरासत को फिर से जीवंत कर दिया। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि इतिहास के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संघर्षों में भारत, विशेषकर केरल के लोगों की भी गहरी भागीदारी रही है।

 

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