Edited By rajesh kumar,Updated: 29 Dec, 2024 04:13 PM
प्रयागराज के कुंभ मेला में इस समय साधु-संतों का एक अजीबो-गरीब संसार देखने को मिल रहा है। यहां हर बाबा की अपनी एक अनोखी कहानी है। कुछ बाबा ई-रिक्शा से यात्रा करते हैं, तो कुछ हाथ योगी हैं, जबकि कुछ अपने साथ जानवर या घोड़े रखते हैं। इन सबके बीच एक...
नेशनल डेस्क: प्रयागराज के कुंभ मेला में इस समय साधु-संतों का एक अजीबो-गरीब संसार देखने को मिल रहा है। यहां हर बाबा की अपनी एक अनोखी कहानी है। कुछ बाबा ई-रिक्शा से यात्रा करते हैं, तो कुछ हाथ योगी हैं, जबकि कुछ अपने साथ जानवर या घोड़े रखते हैं। इन सबके बीच एक बाबा ऐसे हैं जिनका नाम "चाबी वाले बाबा" है। बाबा के पास भारी-भरकम लोहे की चाबी है, जिसे वे अपने हाथ में लेकर चलते हैं। इस चाबी की अपनी एक रहस्यमयी कहानी है और लोग इन्हें इस चाबी के राज को जानने के लिए दर्शन करने आते हैं।
कौन हैं चाबी वाले बाबा?
चाबी वाले बाबा का असली नाम हरिश्चंद्र विश्वकर्मा है, और वे उत्तर प्रदेश के रायबरेली से हैं। 50 वर्षीय हरिश्चंद्र बचपन से ही अध्यात्म की ओर आकर्षित थे, लेकिन घरवालों के डर के कारण वे खुलकर नहीं बोल पाते थे। 16 साल की उम्र में उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत से लड़ने का निर्णय लिया और घर छोड़ दिया। अब वे कबीरा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं, क्योंकि वे कबीर पंथी विचारधारा का पालन करते हैं।
चाबी का रहस्य
कबीरा बाबा ने बताया कि उनके पास जो चाबी है, वह केवल एक लौह वस्तु नहीं है, बल्कि अहंकार के ताले को खोलने का एक प्रतीक है। वे कहते हैं कि इस चाबी के माध्यम से वे लोगों के अहंकार को तोड़ते हैं और उन्हें अध्यात्म का रास्ता दिखाते हैं। उनका मानना है कि अहंकार और नफरत को समाप्त करके ही समाज में सच्ची शांति और प्रेम फैल सकता है। बाबा अपनी यात्रा के दौरान जहां भी जाते हैं, वहां लोग उन्हें चाबी के बारे में पूछते हैं और दर्शन करते हैं।
यात्रा की शुरुआत और रथ
कबीरा बाबा की यात्रा की शुरुआत साइकिल से हुई थी, लेकिन अब उनके पास एक रथ है, जिसे वह हाथों से खींचते हैं। बाबा ने अपने रथ को खींचने के लिए जुगाड़ से एक हैंडल भी तैयार किया है। उनका कहना है कि उनके बाजू मजबूत हैं, और वे इस रथ को खींच सकते हैं। अब तक वे हजारों किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं और अब कुंभ नगरी में पहुंचे हैं।
स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा
कबीरा बाबा ने बताया कि वे स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते हैं। उनका मानना है कि अध्यात्म कहीं बाहर नहीं है, बल्कि वह हमारे भीतर ही है। बाबा का कहना है कि अब समय आ गया है जब लोगों को अध्यात्म की सच्चाई को समझना चाहिए, और वे इसे अपनी चाबी के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।