Edited By Mahima,Updated: 06 Jan, 2025 11:56 AM
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए संकट का दौर जारी है, और अब वे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने जा सकते हैं। खालिस्तानी प्रोपगेंडा, भारत विरोधी नीतियों और बढ़ती असंतोष के कारण उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है। 2024 में मंत्रिमंडल के कई...
नेशनल डेस्क: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है, और अब यह चर्चा तेज हो गई है कि वे जल्द ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रूडो लिबरल पार्टी के नेतृत्व से भी इस्तीफा दे सकते हैं। उनके इस्तीफे की संभावनाओं को लेकर मीडिया में तरह-तरह की खबरें चल रही हैं, जिनमें यह भी कहा गया है कि वह अपनी पद छोड़ने की घोषणा बुधवार को होने वाली एक अहम राष्ट्रीय कॉकस बैठक से पहले कर सकते हैं। यह खबर कनाडा की राजनीति में तूफान की तरह महसूस हो रही है, क्योंकि ट्रूडो का प्रधानमंत्री के रूप में सफर कई विवादों और आलोचनाओं से घिरा रहा है।
ट्रूडो का प्रधानमंत्री बनने का सफर
जस्टिन ट्रूडो ने 2013 में लिबरल पार्टी का नेतृत्व संभाला था, जब पार्टी मुश्किल दौर से गुजर रही थी। उन्होंने अपने नेतृत्व में पार्टी को 2015 के चुनावों में शानदार जीत दिलाई, जिसमें लिबरल पार्टी ने 338 सीटों में से 184 सीटों पर विजय प्राप्त की। इस चुनाव में पार्टी को 39.5 प्रतिशत लोकप्रिय मत मिले थे, जो उस समय की एक जबरदस्त सफलता थी। ट्रूडो की जीत ने उनकी राजनीति में नया मुकाम हासिल किया और वह कनाडा के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद ट्रूडो ने 2019 और 2021 के चुनावों में भी जीत हासिल की, लेकिन समय के साथ उनकी लोकप्रियता में गिरावट आने लगी। एक ओर जहां ट्रूडो की सरकार ने सामाजिक सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी मुद्दों पर महत्वपूर्ण कदम उठाए, वहीं दूसरी ओर उनकी नीतियों और कई विवादों ने उन्हें आलोचनाओं के घेरे में डाल दिया।
खालिस्तानी तत्वों को समर्थन देने का आरोप
ट्रूडो की नीतियों में एक महत्वपूर्ण पहलू उनकी भारत विरोधी स्थिति रही है। कनाडा में खालिस्तान समर्थकों को राजनीतिक संरक्षण देने के कारण उनकी छवि विवादों में घिरी। कनाडा में जब सिख आतंकवादियों के साथ संबंध रखने वाले लोगों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियां की गईं, तो ट्रूडो ने इन पर कड़ा रुख नहीं अपनाया। बल्कि, वह इन खालिस्तानी तत्वों को समर्थन देने का आरोप भी झेलते रहे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण था जब ट्रूडो ने 2023 में कनाडा की संसद में यह आरोप लगाया कि भारत सरकार के एजेंटों ने एक कनाडाई नागरिक की हत्या की। उस नागरिक का नाम हरदीप सिंह निज्जर था, जो खालिस्तानी आतंकवादी था और भारत के लिए वांछित था। ट्रूडो के इस बयान ने भारत और कनाडा के द्विपक्षीय संबंधों में खटास डाल दी।
भारत सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि कनाडा में खालिस्तानी उग्रवादियों का बढ़ता प्रभाव दोनों देशों के रिश्तों के लिए खतरे का कारण बन सकता है। हालांकि, अब तक इस हत्याकांड में भारत की संलिप्तता का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सका है, लेकिन ट्रूडो के इस आरोप ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। इसके अलावा, कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमले और भारतीय समुदाय पर होने वाले हमलों को लेकर ट्रूडो की सरकार पर कई बार सवाल उठे थे, लेकिन वह इन मुद्दों पर चुप्पी साधे रहे थे।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रूडो के लिए की भविष्यवाणी
ट्रूडो की नीतियों से न केवल कनाडा में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विरोध हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रूडो के लिए कठिन समय की भविष्यवाणी की थी और उन्हें "कनाडा के महान राज्य का गवर्नर" तक कह डाला था। इसके अलावा, मशहूर उद्योगपति एलन मस्क ने भी ट्वीट कर कहा था कि ट्रूडो अगले चुनाव में हारने वाले हैं। इससे ट्रूडो की प्रतिष्ठा को गंभीर धक्का लगा। इसके अलावा, ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का "51वां राज्य" बनाने का सुझाव भी दिया था, जिससे व्यापार और टैरिफ संबंधी समस्याओं को हल करना आसान हो सकता था। ट्रूडो ने इस सलाह को नजरअंदाज किया, लेकिन ट्रंप की आलोचनाओं ने कनाडा की राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को बदलकर रख दिया।
ट्रूडो से इस्तीफा देने की मांग शुरू
कनाडा में ट्रूडो के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा था। 2021 के बाद से लिबरल पार्टी को कई बाई-इलेक्शन में हार का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी के भीतर विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई। पार्टी के सांसदों ने भी अब ट्रूडो से इस्तीफा देने की मांग शुरू कर दी है। इसके अलावा, महंगाई और बेरोजगारी की बढ़ती दर ने उनकी नीतियों पर सवाल उठाए हैं। कनाडा में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के कारण लोगों में असंतोष बढ़ रहा था। 2024 में बेरोजगारी दर साढ़े 6 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जो कि ट्रूडो सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई थी। ट्रूडो की टैक्स नीतियों और खर्च में वृद्धि से आम जनता परेशान थी, जिससे विपक्ष को एक मजबूत मुद्दा मिल गया था। कंजरवेटिव पार्टी ने इसे मुद्दा बनाकर ट्रूडो को घेरा था।
वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी अपने पद से दिया इस्तीफा
2024 के अंत में, ट्रूडो के मंत्रिमंडल में इस्तीफों की झड़ी लग गई। 19 सितंबर को परिवहन मंत्री पाब्लो रोड्रिग्ज, 20 नवंबर को अल्बर्टा के सांसद रैंडी बोइसोनॉल्ट, और 15 दिसंबर को आवास मंत्री सीन फ्रेजर ने इस्तीफा दिया। इसके बाद, 16 दिसंबर को उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इन इस्तीफों ने ट्रूडो के शासन की मजबूती को और कमजोर किया।इन इस्तीफों ने यह साफ कर दिया कि अब पार्टी में ट्रूडो के खिलाफ असंतोष इतना बढ़ चुका है कि वह अपने पद पर बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एक ओर जहां पार्टी के भीतर विद्रोह था, वहीं दूसरी ओर देश में ट्रूडो के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे थे। लिबरल पार्टी के कई सांसदों ने यह कहा था कि ट्रूडो का समय अब समाप्त हो चुका है और उन्हें पार्टी का नेतृत्व छोड़ देना चाहिए।
लोगों की राय और भविष्य की स्थिति
ट्रूडो की लोकप्रियता में लगातार गिरावट देखी जा रही है। Ipsos के एक ताजा सर्वे में 73 प्रतिशत कनाडाई नागरिकों ने कहा कि वे चाहते हैं कि ट्रूडो इस्तीफा दें। इसके अलावा, 43 प्रतिशत लिबरल पार्टी के समर्थकों ने भी उन्हें पार्टी नेतृत्व से बाहर करने की मांग की है। देश में बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और उनके आर्थिक फैसलों से जनमानस में असंतोष बढ़ा है। 2024 के अंत तक, ट्रूडो के लिए यह स्पष्ट हो चुका था कि उनकी राजनीतिक यात्रा समाप्ति की ओर है। लिबरल पार्टी के अंदर कई सांसदों ने खुले तौर पर यह कहा कि उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए, और पार्टी के भीतर नया नेतृत्व लाने की आवश्यकता है।
संभावना और भविष्य की दिशा
कनाडा में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद किसे पार्टी का अगला नेता बनाया जाएगा, यह अब सबसे बड़ा सवाल बन चुका है। लिबरल पार्टी और कनाडा की राजनीति में अगले कुछ महीनों में कई अहम बदलाव देखने को मिल सकते हैं। हालांकि, वर्तमान में ट्रूडो के पद से हटने की संभावना काफी प्रबल दिखाई दे रही है, और यह देश के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक अहम मोड़ हो सकता है। कनाडा में एक नए नेतृत्व की आवश्यकता महसूस की जा रही है, और आने वाले समय में यह देखा जाएगा कि क्या लिबरल पार्टी किसी नए चेहरे को नेतृत्व में लाती है, जो देश की राजनीतिक स्थिति को संभाल सके।