कनाडा में पी.एम. ट्रूडो के गले की फांस बने खालिस्तानी, हिंदू समुदाय एक जुट हुआ तो नहीं बच पाएगी कुर्सी

Edited By Mahima,Updated: 13 Nov, 2024 11:10 AM

khalistanis have become a thorn in the neck of pm trudeau in canada

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को खालिस्तानी समर्थकों के प्रति अपने रुख के कारण राजनीतिक मुश्किलें आ रही हैं। ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर खालिस्तानी हमले के बाद हिंदू समुदाय में असंतोष बढ़ा है। कनाडा में हिंदू समुदाय, सिखों से बड़ा है, और उनका...

नेशनल डेस्क: कनाडा की सियासत में खालिस्तानी प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो के गले की फांस बन गए हैं। ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर में खालिस्तानियों द्वारा श्रद्धालुओं किए गए हमले के बाद ट्रूडो की सियासत का संतुलन भी बिगड़ता नजर आ रहा है। उन्हें अब यह समझ आने लगा है कि कनाडा के विभिन्न प्रांतों में बिखरे हुए हिंदू समुदाय के लोग अगर 2025 के आम चुनावों में एकजुट होकर उनके खिलाफ खड़े हो गए तो उनकी कुर्सी बच नहीं पाएगी। कुल मिलाकर खालिस्तानियों ने बीते दो वर्षों से कनाडा में हिदुओं के खिलाफ जो एजेंडा शुरु किया है अब वह ट्रूडो की सियासत पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। जानकारों का कहना है कि आगामी चुनावों में हिंदुओं की भूमिका अहम रहने वाली है।

सोशल मीडिया पर सफाई दे रहे हैं खालिस्तानी
यहां उल्लेखनीय यह है कि कनाडा में हिंदू समुदाय के लोगों की संख्या उस सिख समुदाय से ज्यादा है जिनके दम पर खालिस्तानी ट्रूडो को गुमराह करते आए हैं। ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर खालिस्तानी हमले के बाद सिख समुदाय ने भी उनके कृत्य की निंदा कर उन पर कड़ा प्रहार किया है। जिसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर खालिस्तानियों ने कई ऐसे वीडियो डाले हैं, जिनमें मंदिर पर हमले के लिए हिंदुओं को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कनाडा में हिंदुओं की मौजूदगी की बात की जाए तो वे कनाडा की कुल 3 करोड़ 69 लाख 91 हजार 981 जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत (8 लाख 28 हजार 195) हैं, जबकि सिख समुदाय के लोग 2.1 प्रतिशत (7 लाख 71 हजार 790) हैं। यही वजह है कि खालिस्तानी अब सोशल मीडिया पर वीडियो डाल कर मंदिर पर किए गए हमले पर सफाई दे रहे हैं कि पहले हिंदुओं ने उन पर हमला किया था।

कनाडा में कब शुरु हई भारत विरोधी गतिविधियां
कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों के 2019 से पहले खालिस्तानी समर्थकों के ज्यादा भारत विरोधी गतिविधयां नहीं होती थी, लेकिन इसके बाद ट्रूडो सरकार जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन में चलने लगी। जगमीत सिंह को खालिस्तानी समर्थक माना जाता है। वह पंजाब के बरनाला जिले के ठिकरिवाल गांव के ताल्लुक रखते हैं। इनका परिवार 1993 में कनाडा चला गया था। कहा जाता है कि भारत में 1984 में सिख विरोधी दंगे को लेकर जगमीत हमेशा से मुखर रहे हैं। 2013 में जब भारत सरकार ने उन्हें वीजा देने से इनकार किया था तो उन्होंने कहा था कि मैं 1984 के दंगा पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बात करता हूं इसलिए भारत सरकार मुझसे खफा रहती है। उन्होंने कहा था कि 1984 का दंगा दो समुदायों के बीच का दंगा नहीं था बल्कि सरकार द्वारा प्रायोजित जनसंहार था।

कैसे कनाडा की राजनीति में जगमीत ने बनाई पैठ
यहां अहम बात यह है कि न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एन.डी.पी.) में उनकी जगमीत की जड़ें इतनी गहरी है कि उन्हें पार्टी के मुखिया पद से हटाना आसान नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में पार्टी लीडर (अध्यक्ष) के चुनाव से करीब तीन माह पहले जगमीत सिंह ने पार्टी सदस्यता अभियान को तेज कर दिया था। कहा जाता है कि उनकी टीम ने 47,000 नए सदस्य बनाए थे। डाटा से पता चलता है कि मई 2017 में दौड़ में अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल होने के बाद से उन्होंने 3 लाख 50,000 डॉलर से अधिक पार्टी के लिए जुटाए थे। नवंबर 2017 में चुनाव जीत कर उन्होंने पार्टी की कमान संभाल ली थी। बताते हैं कि अब पार्टी को खालिस्तानी संगठन चंदा देकर मजबूत कर रहे हैं। जगमीत की पार्टी ने 2019 के बाद 2021 में भी ट्रूडो सरकार को समर्थन दिया  था। इस दौरान जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को सबसे अधिक 157 सीट मिली थी। हालांकि बहुमत के लिए उन्हें 170 का आंकड़ा चाहिए था। इस दौरान जगमीत किंगमेकर की भूमिका में आ गए और 27 सीटों के साथ जस्टिन ट्रूडो को समर्थन दिया।

ट्रूडो के रवैये से परेशान हे हिंदू समुदाय
कनाडा में चुनावी सर्वे जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी के खिलाफ आ रहे हैं। यही वजह है कि खालिस्तानियों के जरिए वह अब कनाडा में सिख समुदाय का समर्थन हासिल करना चाहते हैं, हालांकि मंदिरों पर हमलों की घटनाओं की वजह से हालात बदलते नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि अब हिंदू समुदाय के लोग ट्रूडो के खालिस्तानियों के प्रति रवैये से परेशान हो चुके हैं। बीते दो साल से कनाडा में हिंदुओं के मंदिरों में करीब दो दर्जन से ज्यादा बेअदबी की घटनाएं हुई हैं, जिनके पीछे खालिस्तानियों का हाथ बताया जाता है। इतिहास गवाह है कि भारत में कभी भी सिख समुदाय द्वारा हिंदुओं के प्रति इस तरह की घटनाओं को अंजाम नहीं दिया गया है। पंजाब के हर राज्य में सिख और हिंदू प्रेम भाव से रहते हैं। जानकारों का कहना है कि ब्रैम्पटन में मंदिर पर हुए हमले के बाद  जस्टिन ट्रूडो हिंदू और सिख समुदाय के निशाने पर आ गए हैं। जिसका खामियाजा उन्हें 2025 अक्टूबर के आम चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।       

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