Edited By Rahul Singh,Updated: 02 Oct, 2023 05:06 PM
महात्मा गांधी ने कहा था- मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। उनके भारत के बाहर दुनियाभर में कई स्मारक हैं, लेकिन पोरबंदर स्थित उनकी जन्म स्थली जर्जर हो गई है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के द्वारा इसकी मरम्मत की बजाय ताला लगा दिया गया है।
नेशनल डैस्क : महात्मा गांधी ने कहा था- मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। उनके भारत के बाहर दुनियाभर में कई स्मारक हैं, लेकिन पोरबंदर स्थित उनकी जन्म स्थली जर्जर हो गई है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के द्वारा इसकी मरम्मत की बजाय ताला लगा दिया गया है। वहीं, अहमदाबाद के जिस साबरमती आश्रम में रहकर बापू ने आजादी का आंदोलन चलाया था, उसका करीब 1200 करोड़ रुपए के खर्च से नवीनीकरण हो रहा है। इसी अनदेखी के कारण पोरबंदर में जन्मस्थली कीर्तिभवन को देखने रोजाना 400-500 लोग आते हैं, वहीं साबरमती आश्रम में 3 हजार से ज्यादा लोग आते हैं।
बापू के जन्मस्थल भवन के दर्शन के लिए महात्मा गांधीजी की जन्मस्थली आने वाले लोगों को निराश होना पड़ता है। राजस्थान के कोटा से पोरबंदर आए रामसिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ। रामसिंह ने कहा कि गांधीजी के जन्म वाले भवन को देखने की इच्छा से ही राजस्थान से पोरबंदर आया । बापू के जन्मस्थल के दर्शन की मेरी दशको पुरानी अभिलाषा थी लेकिन यहां आकर सिर्फ एक कक्ष (कमरा) ही देख सका। भवन का शेष हिस्सा जर्जरहाल होने की वजह से जा नहीं पाया और मेरी इच्छा अधूरी रह गई।
एएसआई ने कहा- टेंडर प्रक्रिया चल रही है:
पोरबंदर एएसआई के राजकोट सर्कल के तहत आता है। राजकोट सर्कल इंजीनियर हर्षद सुतरिया का कहना है कि गांधी जन्मस्थल वाला भवन बीते लगभग डेढ़ वर्ष से जर्जर हाल होने की वजह से बंद किया गया है। हम अपने विभाग के जरिए जल्द ही टेंडर जारी करके मरम्मत कार्य शुरू करेंगे। अब तक काम शुरू करने संबंधी प्रक्रिया चल रही थी, इस वजह से काम शुरू नहीं हो सका।
बता दें कि गांधी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय नगर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की पंसारी जाति से संबंध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे। उनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थीं। पुतलीबाई करमचन्द की चौथी पत्नी थी। उनकी पहली तीन पत्नियां प्रसव के समय मर गई थीं।