Edited By Seema Sharma,Updated: 22 Jul, 2019 01:25 PM
भारत की आजादी के इतिहास में 22 जुलाई की तारीख का अपना अलग और खास महत्त्व है। यह दिन देश के राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ा है। वह 22 जुलाई का दिन था, जब संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया था।
नेशनल डेस्कः भारत की आजादी के इतिहास में 22 जुलाई की तारीख का अपना अलग और खास महत्त्व है। यह दिन देश के राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ा है। वह 22 जुलाई का दिन था, जब संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया था। आज जिस भारतीय तिरंगे को देखकर हमारा सिर स्वत: ही गर्व से झुक जाता है, अगर एडॉक कमेटी न होती तो हम आज भी ब्रिटिग सरकार के झंडे के सामने नमन करते। जी हां, अंग्रेज जब देश छोड़कर जा रहे थे तब वायसरॉय लार्ड माउंटबेटेन ने 24 जून 1947 को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में ब्रिटिश यूनियन जैक को शामिल करने का प्रस्ताव संविधान सभा के सामने रखा था।
राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में बनी एडॉक कमेटी में मौलाना आजाद, केएम मुंशी, सरोजनी नायडू, सी राजगोपालाचारी और बी.आर. अंबेडकर शामिल थे। यूनियन जैक के प्रस्ताव का देश के अधिकतर लोगो ने विरोध किया था पर महत्मा गांधी माउंटबेटेन के सपोर्ट में थे। गांधीजी का तर्क था कि भारत अपनी महान संस्कृति और परंपरा के तौर पर अगर यूनियन जैक को शामिल कर लेता है तो इसमें किसी को हर्ज नहीं होना चाहिए। लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू और एडहॉक कमेटी ने गांधी जी की बात को अधिक महत्व न देते हुए लार्ड माउंटबेटेन की सुझाव को सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद 3 हफ्ते सोच-विचार करने के बाद 14 जुलाई 1947 को कमेटी ने तिरंगे को कायम रखा और 22 जुलाई को संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया।
राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी कुछ खास बातें
- यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह राष्ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं:
- प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
- द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
- तृतीय ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बायीं और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
- अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
- वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी।
- उसके बाद जुलाई 1947 में नया तिरंगा तैयार किया गया जिसमें सबसे ऊपर केसरी, बीच में सफेद और सबसे नीचे हरा रंग रखा गया। बापू के चरखे की जगह सफेद पट्टी पर अशोक चक्र बनाया गया, इसे धर्म चक्र भी कहते हैं। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है। इस चक्र में 24 अरे होते हैं।
राष्ट्रध्वज के लिए तय किए गए कुछ नियम
- 1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो ने राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किए। 1968 में तिरंगा निर्माण के मानक तय किए गए। ये नियम अत्यंत कड़े हैं।
- केवल खादी या हाथ से काता गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनने तक की प्रक्रिया में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है।
- झंडा बनाने के लिए दो तरह की खादी का प्रयोग किया जाता है। एक वह खादी जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी-टाट। खादी में केवल कपास, रेशम और ऊन का प्रयोग किया जाता है।
- तिरंगे की बुनाई बेहद दुर्लभ होती है। इसे केवल पूरे देश के एक दर्जन से भी कम लोग जानते हैं। धारवाण के निकट गदग और कर्नाटक के बागलकोट में ही खादी की बुनाई की जाती है। बुनाई से लेकर बाजार में पहुंचने तक कई बार बीआईएस प्रयोगशालाओं में इसका परीक्षण होता है। इसके बाद उसे तीन रंगो में रंगा जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को काढ़ा जाता है। उसके बाद इसे फिर परीक्षण के लिए भेजा जाता है। बीआईएस झंडे की जांच करता है इसके बाद ही इसे बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है।
- खुले में कहीं पर भी फहराया जाने वाला झंडा सुबह से शाम तक ही फहराया जा सकता है। इस नियम से छूट सिर्फ प्रतीकात्मक झंडों को मिली है जैसा कि दिल्ली के कनॉट प्लेस में लगाया गया है। इनको भी रात में फहराने की अनुमति तब ही मिलती है जब झंडे के आसपास उचित प्रकाश की व्यवस्था हो।
- तिरंगा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है।
- किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय तिरंगे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगाया जाएगा, न ही बराबर में रखा जाएगा।
- तिरंगे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।