'युद्ध में 17 गोलियां लगीं, मुझे लगा कि मैं मर गया', जानिए कारगिल फतह करने वाले कैप्टन योगेंद्र यादव की कहानी

Edited By rajesh kumar,Updated: 26 Jul, 2024 03:05 PM

know the story of captain yogendra yadav who conquered kargil

पाकिस्तान के जवानों ने जब गोली चलाई, तो मेरे सीने पर पर्स था जिसमें सिक्के थे। गोली सिक्कों से टकराकर निकल गई। मुझे लगा कि मैं मर गया हूं। मेरा एक हाथ और एक पैर खत्म हो गया था, लेकिन मैंने उन्हीं की राइफल से पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया।

नेशनल डेस्क: पाकिस्तान के जवानों ने जब गोली चलाई, तो मेरे सीने पर पर्स था जिसमें सिक्के थे। गोली सिक्कों से टकराकर निकल गई। मुझे लगा कि मैं मर गया हूं। मेरा एक हाथ और एक पैर खत्म हो गया था, लेकिन मैंने उन्हीं की राइफल से पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया। ये कहना है कारगिल युद्ध में 17 गोलियां खाने के बाद परमवीर चक्र पाने वाले कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव का। आइए जानते हैं उनकी वीरता की कहानी...

कारगिल युद्ध के वक्त मेरी उम्र 19 साल थी
मेरा जन्म 10 मई 1980 को बुलंदशहर के गांव औरंगाबाद अहीर में हुआ था। मेरे पिता रामकरण सिंह यादव फौज में सुबेदार थे और 1965 व 1971 के युद्ध में भी शामिल हुए थे। मैं बचपन से ही युद्ध की कहानियां सुनता आया था। जब मैं 12वीं में था, तभी 16 साल 5 महीने की उम्र में भारतीय सेना में सिपाही के पद पर भर्ती हो गया। मेरी पहली तैनाती कश्मीर में हुई। 1999 में जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ, मेरी उम्र 19 साल थी और मेरी शादी को सिर्फ 15 दिन ही हुए थे। हमें सूचना मिली कि पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ कर दी है।
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13,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित पहाड़ों और माइनस 20 डिग्री तापमान के बावजूद, हमने पाकिस्तानी सैनिकों को हराना शुरू किया। मेरी यूनिट 18 ग्रेनेडियर्स को ग्रास सेक्टर जाने का आदेश मिला। हमने सबसे पहले तोलोलिग टॉप पर हमला किया और दुश्मनों को खदेड़ना शुरू किया। 22 दिन की लड़ाई के बाद, 21 जवानों की शहादत के बाद, 12 जून 1999 को हमारी यूनिट को टाइगर हिल पर कब्जा करने का आदेश मिला।
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अत्यधिक ठंड से मेरी खाल तक फट गई थी
हम रात में ही चढ़ाई करते थे। टाइगर हिल की ऊंची चोटी को कब्जा करने के लिए कमांडो टीम बनाई गई। मैं उस टीम के साथ दो रात तक चलता रहा। अत्यधिक ठंड से मेरी खाल तक फट गई थी, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। तीसरी रात को हमने 90 डिग्री की चट्टान पर चढ़ना शुरू किया, लेकिन यह बहुत कठिन लग रहा था। रस्सियों के सहारे केवल सात जवान ही ऊपर चढ़ पाए। यहां पांच घंटे तक दुश्मनों से लड़ाई हुई।
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मुझे 17 गोलियां लगीं
मेरे छह साथी शहीद हो गए और मुझे 17 गोलियां लगीं। दुश्मन देख रहे थे कि कोई जिंदा तो नहीं है। अचानक उन्होंने मेरे सीने, हाथ और पैर में गोली मारी। सीने पर लगने वाली गोली सिक्कों से टकराकर फिसल गई। मैंने मौका देखकर उन्हीं की राइफल से गोलियां बरसाईं और चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। पहाड़ी से लुढ़ककर नीचे आया और साथियों को सूचना दी। उसी रात हमने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया।

 

 

 

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