वो अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर चलती थीं, ताकि स्कूल... जानें Savitribai Phule की कहानी

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 02 Jan, 2025 03:10 PM

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आज, सावित्रीबाई फुले की जयंती पर हम उनसे सीख लेते हैं कि शिक्षा ही वह माध्यम है, जो समाज में बदलाव लाने का सबसे सशक्त हथियार है। उनकी कहानी...

नेशनल डेस्क: भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जीवन संघर्ष, साहस और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है। 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव नायगाँव में जन्मी सावित्रीबाई ने भारतीय समाज में महिलाओं और दलितों की शिक्षा के लिए जो कार्य किया, वह इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उनके जीवन की एक विशेष घटना ऐसी है, जिसने न केवल उनके अद्वितीय संघर्ष को दर्शाया, बल्कि समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने की नींव भी रखी।

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सावित्रीबाई का विवाह 9 वर्ष की आयु में ज्योतिराव फुले से हुआ, जिन्होंने उनके जीवन को नई दिशा दी। उनके पति ज्योतिराव ने जब उनकी शिक्षा शुरू की, तो यह समाज के लिए क्रांतिकारी कदम था। एक अनपढ़ महिला को पढ़ाना उस समय के सामाजिक ढाँचे के खिलाफ था। लेकिन ज्योतिराव के समर्थन और सावित्रीबाई की जिजीविषा ने इस असंभव को संभव कर दिखाया। जल्द ही सावित्रीबाई ने स्वयं शिक्षिका बनने का निश्चय किया और साल 1848 में पुणे में देश का पहला महिला विद्यालय खोला। यह कदम उस समय के समाज के लिए चौंकाने वाला था, जहाँ महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था।

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जब सावित्रीबाई प्रतिदिन विद्यालय पढ़ाने जाती थीं, तब उन्हें समाज के रूढ़िवादी लोगों के तानों और अपमान का सामना करना पड़ता था। लोग उन पर गंदगी फेंकते थे, ताकि वह रास्ते में ही लौट जाएँ। लेकिन सावित्रीबाई ने हार नहीं मानी। वह अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर चलती थीं, ताकि स्कूल पहुँचने से पहले गंदे कपड़े बदल सकें और बच्चों को पढ़ाने में कोई बाधा न आए। 

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वास्तव में यह घटना सावित्रीबाई की अटूट इच्छाशक्ति और साहस को दर्शाती है। उन्होंने उन परिस्थितियों को नकारा नहीं, बल्कि उनका डटकर सामना किया। यह संघर्ष न केवल महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रेरणा बना, बल्कि यह संदेश भी दिया कि सामाजिक परिवर्तन आसान नहीं होता, लेकिन अगर संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी बाधा रोक नहीं सकती। सावित्रीबाई केवल शिक्षिका ही नहीं थीं, बल्कि उन्होंने समाज सुधारक के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया, बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई और जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए कार्य किया। उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा को एक अधिकार बनाने की दिशा में पहला कदम उठाया था।

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