जानें कौन थे विश्वप्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन? कैसे फर्श पर सोने वाला व्यक्ति बन गया उस्ताद

Edited By Pardeep,Updated: 15 Dec, 2024 11:31 PM

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विश्वप्रसिद्ध तबला वादक और पद्म विभूषण से सम्मानित उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन 15 दिसंबर को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुआ। वह 73 वर्ष के थे और वहां उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली।

नेशनल डेस्कः विश्वप्रसिद्ध तबला वादक और पद्म विभूषण से सम्मानित उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन 15 दिसंबर को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुआ। वह 73 वर्ष के थे और वहां उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। 

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 
उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से प्राप्त की, और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। जाकिर हुसैन के पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा कुरैशी भी एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, और उनकी मां का नाम बीवी बेगम था। 

संगीत यात्रा की शुरुआत
उस्ताद जाकिर हुसैन का संगीत के प्रति रुझान बचपन से ही था। वह मात्र 11 वर्ष की आयु में अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट कर चुके थे। 1973 में उनका पहला एल्बम Living in the Material World रिलीज हुआ, जो उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। 

दुनिया भर में पहचान
उस्ताद जाकिर हुसैन को भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण से नवाजा गया था। इसके अलावा, उन्हें तीन ग्रैमी पुरस्कार भी मिल चुके थे। 2016 में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें व्हाइट हाउस में ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, जिससे उनकी वैश्विक पहचान और भी मजबूत हुई। 

संगीत में अनूठी प्रतिभा
उस्ताद जाकिर हुसैन का संगीत का तरीका बेहद अनूठा था। वह किसी भी सपाट सतह पर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे, चाहे वह बर्तन हों या कोई अन्य सतह। उनकी कला इतनी प्रभावशाली थी कि वह बचपन में किचन में बर्तनों पर भी अपनी धुनें बजाया करते थे। जब वह ट्रेन में यात्रा करते थे और सीट नहीं मिलती थी, तो वह अपना तबला गोद में रखकर फर्श पर सो जाते थे ताकि तबले को कोई नुकसान न पहुंचे। 

जीवन के अनमोल क्षण
जाकिर हुसैन के जीवन में एक खास घटना थी, जब उन्हें केवल 12 साल की उम्र में पांच रुपए मिले थे। यह रुपए उनके जीवन में सबसे ज्यादा कीमती थे। वह अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे, जिसमें पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान और अन्य महान कलाकार मौजूद थे। परफॉर्मेंस के बाद उन्हें ये पांच रुपए मिले, जो उन्होंने हमेशा याद रखा। 

अंतर्राष्ट्रीय पहचान और फिल्मों में योगदान 
उस्ताद जाकिर हुसैन का योगदान संगीत के अलावा फिल्मों में भी था। उन्होंने 1983 में हीट एंड डस्ट फिल्म से अभिनय की शुरुआत की, जिसमें अभिनेता शशि कपूर भी थे। इसके बाद, 1998 की फिल्म साज में भी उनका अभिनय देखने को मिला, जिसमें वह शबाना आजमी के प्रेमी के किरदार में थे। हालांकि, उन्हें मुगल ए आजम (1960) में सलीम के छोटे भाई का रोल भी ऑफर हुआ था, लेकिन उनके पिता ने यह निर्णय लिया कि उनका ध्यान केवल संगीत पर होना चाहिए। 

उस्ताद जाकिर हुसैन की धरोहर 
उस्ताद जाकिर हुसैन का योगदान भारतीय संगीत और संस्कृति में अविस्मरणीय रहेगा। उनका निधन संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी धुनें और संगीत की विरासत हमेशा जीवित रहेगी।

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