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Kumbh Mela 2025: कुम्भ स्नान मनुष्य के पूर्वजन्मों के पापों को करता नष्ट, इन ग्रहों के मिलने पर ही बनता महाकुंभ का संयोग

Edited By Anu Malhotra,Updated: 15 Jan, 2025 04:13 PM

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कुम्भ महापर्व एवं कुम्भ मेला भारतवर्ष का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह महापर्व भारत की प्राचीन और गौरवमयी वैदिक संस्कृत्ति तथा सभ्यता का प्रतीक माना जाता है। कुम्भ महापर्व के अवसर पर न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से, बल्कि विश्वभर के अनेक देशों से...

नेशनल डेस्क:  कुम्भ महापर्व एवं कुम्भ मेला भारतवर्ष का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। यह महापर्व भारत की प्राचीन और गौरवमयी वैदिक संस्कृत्ति तथा सभ्यता का प्रतीक माना जाता है। कुम्भ महापर्व के अवसर पर न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से, बल्कि विश्वभर के अनेक देशों से करोड़ों श्रद्धालु तीर्थस्थलों पर पवित्र स्नान, दान, जप और अन्य धार्मिक कृत्य करने के लिए इकट्ठा होते हैं। 'कुम्भ' शब्द का अर्थ 'घड़ा' है, और यह शब्द पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक भी माना जाता है। जहां धर्म, जाति, भाषा, संस्कृति, महात्माओं और सामान्य जनों का समागम हो, उसे कुम्भ महापर्व कहते हैं।

कुम्भ पर्व के बारे में वेद-पुराणों में अनेक महत्वपूर्ण मंत्र और प्रसंग मिलते हैं, जो इस पर्व की प्राचीनता और वैदिक धर्म से जुड़ाव को प्रमाणित करते हैं। 'ऋग्वेद' के दशम मंडल में उल्लेख है कि कुम्भ महापर्व में स्नान, दान और अन्य सत्कर्मों के फलस्वरूप व्यक्ति अपने पापों को समाप्त करता है, जैसे एक कुठार वन को काट देता है। जिस प्रकार नदी अपने तटों को काटती हुई प्रवाहित होती है, वैसे ही कुम्भ पर्व मनुष्य के पूर्वजन्मों के पापों को नष्ट करता है और उसकी आत्मा को शुद्ध करता है।

कुम्भ महापर्व का आयोजन विशेष ग्रहों के संयोग पर आधारित है।
सूर्य, चंद्रमा और देवगुरु बृहस्पति के विशेष संयोग के कारण यह पर्व हर 12 साल में आयोजित होता है। माघ मास की अमावस्या को जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति वृष राशि में होता है, तब कुम्भ महापर्व का आयोजन होता है। यह समय विशेष रूप से प्रयागराज में कुम्भ मेला आयोजित करने के लिए उपयुक्त होता है, जहाँ त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालु स्नान, जप, पूजा और दान करते हैं।

कुम्भ महापर्व का आयोजन 29 जनवरी 2025 को प्रयागराज में होगा, जब माघ (मौनी) अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में तथा बृहस्पति वृष राशि में होंगे। इस दिन विशेष पुण्यकाल सुबह 5:11 बजे से आरंभ होकर माध्याह्न तक रहेगा।

कुम्भ स्नान का विशेष महत्व
कुम्भ स्नान का विशेष महत्व है, विशेषकर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे स्वर्गिक सुख प्राप्त होते हैं। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि माघ मास में कुम्भ पर्व के दौरान प्रयागराज में स्नान करने से व्यक्ति को हजारों अश्वमेघ यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है।

इस बार कुम्भ महापर्व की प्रमुख स्नान तिथियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. 10 जनवरी 2025 - पौष शुक्ल एकादशी (पुत्रदा एकादशी)
  2. 13 जनवरी 2025 - पौष पूर्णिमा
  3. 14 जनवरी 2025 - मकर संक्रांति (प्रथम शाही स्नान)
  4. 25 जनवरी 2025 - माघ कृष्ण एकादशी
  5. 27 जनवरी 2025 - माघ कृष्ण त्रयोदशी
  6. 29 जनवरी 2025 - माघ (मौनी) अमावस (द्वितीय शाही स्नान)
  7. 2 फरवरी 2025 - वसंत पंचमी
  8. 4 फरवरी 2025 - माघ शुक्ल सप्तमी (रथ सप्तमी)
  9. 5 फरवरी 2025 - माघ शुक्ल अष्टमी (भीष्माष्टमी)
  10. 8 फरवरी 2025 - माघ शुक्ल एकादशी (जया एकादशी)

कुम्भ महापर्व के इन प्रमुख स्नान तिथियों पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और पुण्य प्राप्ति के लिए स्नान, पूजा, दान और जप करते हैं। यह पर्व न केवल शारीरिक शुद्धि का अवसर है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त करने का भी माध्यम है।

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