Edited By Monika Jamwal,Updated: 12 Jun, 2021 10:24 PM
कोविड -19 प्रेरित लॉकडाउन के बाद भी जम्मू-कश्मीर के भदरवाह जिले में सुगंधित लैवेंडर पुष्प की खेती से जुड़े लगभग 1,000 परिवारों ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि महामारी के दौरान कई लोगों को नौकरी देने वालों के रूप में भी उभरे हैं।
भदरवाह (जम्मू कश्मीर) : कोविड -19 प्रेरित लॉकडाउन के बाद भी जम्मू-कश्मीर के भदरवाह जिले में सुगंधित लैवेंडर पुष्प की खेती से जुड़े लगभग 1,000 परिवारों ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि महामारी के दौरान कई लोगों को नौकरी देने वालों के रूप में भी उभरे हैं। इलाके में पारंपरिक खेती करने वालों के लिए लैवेंडर खेती करने वाले ये किसान, प्रेरणा का स्रोत भी बन गए हैं। केंद्र सरकार के सुगंधित-पादप कृषि प्रोत्साहन मिशन के तहत भदरवाह जिले के विभिन्न गांवों के परिवारों ने मक्के की खेती की जगह सुगंधित लैवेंडर की खेती की ओर अपना रुख किया है। ये परिवार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में लैवेंडर तेल की बढ़ती मांग की पृष्ठभूमि में अपने फैसले को लेकर खुश हैं, क्योंकि इससे उन्हें अच्छी कमाई हुई है।
अधिकारियों ने कहा कि महामारी और लंबे समय के लॉकडज्ञऊन के समय, लेंवेंडर की खेती करने वाले ये किसान सैकड़ों मजदूरों को रोजगार दे रहे थे, इस प्रकार वे 'आत्मनिर्भर भारत' का वास्तविक उदाहरण बन गए हैं। टिपरी गांव के निवासी 28 वर्षीय अनीश ने पीटीआई-भाषा को बताया, "मैंने पिछले साल महामारी के कारण अपनी नौकरी गंवाने से पहले चार साल तक दिल्ली में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ काम किया था। नौकरी छूटने के बाद दूसरी नौकरी पाने में मुश्किल होने के बाद निराश होकर मैंने अपना बैग पैक किया और अपने पैतृक गांव लौट आया।" हालांकि, उन्होंने कहा कि वापस लौटने और लैवेंडर उगाने के काम में अपने परिवार के साथ शामिल होने के उनके निर्णय ने उनके जीवन में क्रांति ला दी क्योंकि वह एक साल पहले नौकरी तलाशने वाले के स्थान पर नौकरी देने वाले बन गए थे।
उन्होंने इस दूर-दराज के क्षेत्र के किसानों को संगठित करने के लिए आईआईआईएम जम्मू के वैज्ञानिकों को धन्यवाद देते हुए कहा, "मैं आज पहले से कहीं अधिक खुश हूं क्योंकि न केवल मेरी बचत बढ़ी है बल्कि इससे मुझे बहुत संतुष्टि मिली है कि मैं दूसरों को नौकरी दे रहा हूं।" टिपरी, लेहरोटे, खेलानी, मनवा, चिंता, त्रब्बी, कौंडला, शारोरा, चतरा, दांडी, भल्ला और अठखर के कुछ हिस्सों के किसान, जिन्होंने लैवेंडर फूलों की अपनी उपज की कटाई शुरू कर दी है, इस साल बंपर फसल की उम्मीद कर रहे हैं। इन किसानों ने कहा कि कोरोना महामारी के इस कठिन समय में लैवेंडर की खेती की ओर रुख करना उनके लिए एक बड़ी राहत बनकर आई है।
उन्होंने कहा, "जब हमने 10 साल पहले पारंपरिक मक्के की फसल उगाने से सुगंधित लैवेंडर की खेती की ओर रुख किया, तो हमें अपने रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी हतोत्साहित किया गया था, लेकिन आज वे सभी हमें एक प्रेरणा के रूप में देखते हैं।
एक युवा उद्यमी तौफीक बागबान ने कहा, "महामारी के मौजूदा संकट के दौरान जब हर कोई नौकरी और व्यवसाय खोने से चिंतित है, लैवेंडर किसान न केवल अपने लिए अच्छी किस्मत बना रहे हैं, बल्कि कम से कम 3,000 अन्य लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।" न्योटा-करयान के सरपंच, ओम राज ने कहा, "लैवेंडर की खेती ने न केवल हमें महामारी के कठिन समय में खड़े रहने में मदद की, बल्कि इसकी तेज सुगंध ने कोरोना को भी दूर रखा और यह इस बात का प्रमाण है कि किसी भी गांव से जहां लैवेंडर के खेत हैं, एक भी कारोना संक्रमण का मामला सामने नहीं आया।" टिपरी गाँव के प्रगतिशील किसान, जहाँ सभी निवासी लैवेंडर की खेती की ओर मुड़ चुके हैं और लैवेंडर फूलों के प्रमुख उत्पादक बन गए हैं, अपनी उपज को डिस्टलरी इकाइयों तक पहुँचाने के लिए बेहतर सड़क संपर्क की माँग कर रहे हैं।
सीएसआईआर-आईआईआईएम (काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च - इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन) के वैज्ञानिकों ने भद्रवाह में लैवेंडर की खेती की सफलता की कहानी का श्रेय किसानों और इस विषय के विशेषज्ञों के संयुक्त प्रयासों को दिया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे गांव वालों की बढ़ चढ़ कर मदद करने को तैयार हैं। सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू के वरिष्ठ वैज्ञानिक, सुमीत गैरोला ने कहा कि निदेशक सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू, डी श्रीनिवास रेड्डी का लक्ष्य पूरे केंद्र शासित प्रदेश में लैवेंडर और अन्य सुगंधित फसलों की खेती के तहत खेती के रकबे को बढ़ाना है।
गैरोला ने कहा, "2021 में, कोरोना वायरस महामारी के बावजूद, सीएसआईआर-आईआईआईएम ने डोडा और किश्तवाड़ जिलों के किसानों को तीन लाख लैवेंडर के पौधे मुफ्त प्रदान किए।" गैरोला ने कहा, सीएसआईआर-अरोमा मिशन के तहत उच्च मूल्य वाली सुगंधित फसलों की खेती पर एंड टू एंड तकनीक जैसे कि किसानों को लैवेंडर, रोज़मेरी, डैमस्क रोज़, रोमन और जर्मन कैमोमाइल, रोज़ सुगंधित गेरियम, क्लेरी सेज, जम्मू मोनार्दा, रोज़ा ग्रास और लेमनग्रास प्रदान किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इन फसलों की बाजार में बहुत अधिक मांग है और इनमें इस क्षेत्र के किसानों की आय को बढ़ाने की क्षमता है।
उन्होंने कहा, "सीएसआईआर-आईआईआईएम केंद्रशासित प्रदेश में सुगंधित उद्योग के विकास के लिए प्रगतिशील किसानों और युवा उद्यमियों को सुगंधित फसलों की खेती, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन पर प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहा है। अब तक सीएसआईआर-आईआईआईएम ने डोडा जिले में छह सहित जम्मू डिवीजन के विभिन्न स्थानों पर 14 डिस्टलरी इकाइयां स्थापित की हैं।