Life Support: स्वास्थ्य मंत्रालय ने लाइफ सपोर्ट हटाने के लिए जारी किया गाइडलाइंस, ये है शर्तें

Edited By Utsav Singh,Updated: 29 Sep, 2024 12:12 PM

life support health ministry issued guidelines for removing life support

स्वास्थ्य मंत्रालय ने पैसिव यूथनेसिया, या निष्क्रिय इच्छामृत्यु, पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की हैं। यह तब लागू होती है जब मरीज गंभीर और असाध्य बीमारी से ग्रस्त हो और उसके ठीक होने की कोई संभावना न हो।

नेशनल डेस्क : स्वास्थ्य मंत्रालय ने पैसिव यूथनेसिया, जिसे निष्क्रिय इच्छामृत्यु भी कहा जाता है, पर ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी की हैं। यह उन परिस्थितियों में लागू होती है जब मरीज गंभीर और असाध्य बीमारी से ग्रस्त होता है, और उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं होती।इन गाइडलाइंस का उद्देश्य चिकित्सकीय निर्णय लेने की प्रक्रिया को स्पष्ट करना और मरीजों के अधिकारों की रक्षा करना है। यह दिशा-निर्देश स्वास्थ्य सेवाओं में नैतिकता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं, जिससे डॉक्टरों को मरीजों की स्थिति के आधार पर उचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

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ड्राफ्ट गाइडलाइंस की शर्तें

ड्राफ्ट गाइडलाइंस में चार प्रमुख शर्तें रखी गई हैं जिनके आधार पर डॉक्टरों को लाइफ सपोर्ट हटाने का निर्णय लेना होगा:

  1. लाभ का अभाव: जब लाइफ सपोर्ट से मरीज को कोई लाभ नहीं मिल रहा हो।
  2. पीड़ा का अनुभव: जब मरीज को अत्यधिक पीड़ा हो रही हो।
  3. ब्रेन डेड घोषित: जब मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया हो।
  4. लिखित सहमति: जब मरीज या उसके परिजन लिखित में लाइफ सपोर्ट जारी रखने से मना कर दें।

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राय की अंतिम तिथि
सरकारी दिशा-निर्देशों में यह सुझाव दिया गया है कि अस्पतालों में ऑडिट, निरीक्षण और संघर्ष की स्थिति में समाधान के लिए मल्टी-प्रोफेशनल सदस्यों की एक क्लिनिकल एथिक्स कमिटी का गठन किया जाए। यह समिति नैतिकता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा और निर्णय लेने में मदद करेगी। ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों को तैयार करने में शामिल डॉक्टरों में से एक, डॉ. आर के मणि ने बताया कि इस ड्राफ्ट पर लोगों से 20 अक्टूबर तक उनकी राय मांगी है।  

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डॉक्टरों की चिंताएँ
इंडियन मेडिकल असोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आर. वी. अशोकन ने कहा कि यह गाइडलाइंस डॉक्टरों को कानूनी जांच के दायरे में लाती हैं, जिससे उन्हें मानसिक तनाव हो सकता है। यह ड्राफ्ट गाइडलाइंस महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चिकित्सकीय नैतिकता और मरीजों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है।

 

 

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