विवाहित लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में सुरक्षा देने से सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा: HC

Edited By Harman Kaur,Updated: 27 Jul, 2024 01:29 PM

live in relationship hc refuses to give protection to married couples

: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने विवाहित लिव इन रिलेशनशिप (लिव इन) जोड़ों को सुरक्षा देने से इंकार कर दिया है। जस्टिस संदीप मोदगिल ने 3 मामलों पर सुनवाई के दौरान कहा कि जिन विवाहित जोड़ों ने अपने माता-पिता के घर से भागकर लिव इन रिलेशनशिप में रहना शुरू...

नेशनल डेस्क: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने विवाहित लिव इन रिलेशनशिप (लिव इन) जोड़ों को सुरक्षा देने से इंकार कर दिया है। जस्टिस संदीप मोदगिल ने 3 मामलों पर सुनवाई के दौरान कहा कि जिन विवाहित जोड़ों ने अपने माता-पिता के घर से भागकर लिव इन रिलेशनशिप में रहना शुरू किया है। वे अपने परिवार और विशेषकर माता-पिता के सम्मान का उल्लंघन कर रहे हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है। याचिकाकर्ता घर से भागकर न केवल परिवार की बदनामी कर रहे हैं, बल्कि माता-पिता के सम्मान को भी ठेस पहुंचा रहे हैं। ऐसे मामलों में सुरक्षा देना संभव नहीं है।
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'दूसरा संबंध बनाना गैरकानूनी...'
जस्टिस मोदगिल ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप शादी की तरह नहीं होती। यह एक प्रकार का व्यभिचार है और जब एक व्यक्ति पहले से शादीशुदा हो, फिर बिना तलाक लिए दूसरा संबंध बनाना गैरकानूनी है। ऐसे में लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी सुरक्षा देने का कोई अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता जानते हैं कि वे दोनों पहले से विवाहित हैं, इसलिए उनका रिश्ता कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है।
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'देश में सामाजिक बदलाव हो रहा... '
हाईकोर्ट ने कहा कि देश में सामाजिक बदलाव हो रहा है और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से लिव इन रिलेशनशिप अपनाए जा रहे हैं। लेकिन यदि याचिकाकर्ता विवाहित हैं, तो यह उनके वर्तमान पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय होगा, जिन्हें यह रिश्ता स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने तीनों याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि विवाहित लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में सुरक्षा देने से समाज का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।

'अगर याचिकाकर्ताओं के बीच संबंध शादी जैसा है तो...'
फैसले में जस्टिस मोदगिल ने स्पष्ट किया कि यदि कोर्ट मानता है कि याचिकाकर्ताओं के बीच संबंध शादी जैसा है, तो इसके विरोध में पत्नी और बच्चों के खिलाफ जाकर सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो सुरक्षा की मांग पर विचार नहीं किया जा सकता।  

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