Edited By Mahima,Updated: 29 Oct, 2024 11:50 AM
मद्रास हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह और तलाक के मामलों में फैसला सुनाया कि यदि पति पत्नी को तलाक देता है और पत्नी असहमत होती है, तो यह तलाक केवल तब मान्य होगा जब अदालत इसे स्वीकार करे। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि पति को तलाक के नियमों का पालन साबित...
नेशनल डेस्क: मद्रास हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह और तलाक के मामलों में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यदि मुस्लिम पति अपनी पत्नी को तलाक देता है और पत्नी उसे मानने से इनकार करती है, तो यह तलाक तभी मान्य होगा जब अदालत इसे वैध ठहराएगी। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि विवाद की स्थिति में पति को अदालत के सामने यह प्रमाणित करना होगा कि तलाक के सभी नियमों का पालन किया गया है।
पत्नी की असहमति और भरण-पोषण का अधिकार
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम पति, जिसे शरीयत कानून के तहत एक से अधिक शादी की अनुमति है, अपनी दूसरी शादी के लिए पत्नी को साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। अगर पहली पत्नी पति की दूसरी शादी से असहमत है, तो वह मानसिक पीड़ा के आधार पर भरण-पोषण के खर्च की हकदार होगी।
मामले का संक्षिप्त विवरण
मामला तब सामने आया जब कोर्ट ने पत्नी को मुआवजा देने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ पति की याचिका पर सुनवाई की। पत्नी ने 2018 में घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था, जिसके तहत अदालत ने पति को 5 लाख रुपए मुआवजे के रूप में और बच्चे के भरण-पोषण के लिए 2500 रुपए प्रति माह देने का निर्देश दिया था। पति का दावा था कि उसने पत्नी को तीन बार बोलकर तलाक दिया है, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि तलाक की कानूनी पुष्टि अदालत से ही संभव है।
शरीयत परिषद का प्रमाण पत्र अवैध
अदालत ने शरीयत परिषद द्वारा जारी प्रमाण पत्र को मानने से इनकार कर दिया, जिसमें तलाक को मान्यता न देने के लिए पत्नी को दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने इसे अवैध करार देते हुए कहा कि केवल अदालत ही ऐसे मामलों में निर्णय ले सकती है।