कौन थे Major Shaitan Singh, जिसके नाम से ही कांप जाती है चीनी सैनिकों की रुह

Edited By Utsav Singh,Updated: 20 Jul, 2024 03:35 PM

major shaitan singh whose shivers down the spines of chinese soldiers

मेजर शैतान सिंह, भारतीय सेना के एक वीर और सम्मानित अधिकारी थे, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अपने असाधारण साहस और वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किए गए।

नेशनल डेस्क :  मेजर शैतान सिंह, भारतीय सेना के एक वीर और सम्मानित अधिकारी थे, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अपने असाधारण साहस और वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किए गए। उनका जन्म 1 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसूर गाँव में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी भी सेना में थे, इसलिए मेजर शैतान सिंह का सैन्य जीवन में प्रवेश होना स्वाभाविक था।

प्रारंभिक जीवन और सैन्य करियर
मेजर शैतान सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जोधपुर में प्राप्त की और बाद में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें 1949 में कुमाऊँ रेजिमेंट में कमीशन किया गया।

1962 के भारत-चीन युद्ध में वीरता
1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, मेजर शैतान सिंह की बटालियन, 13 कुमाऊँ, को चुशुल सेक्टर के रेजांग ला में तैनात किया गया था। यह स्थान सामरिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण था। 18 नवंबर 1962 को चीनी सेना ने रेजांग ला पर भारी हमला किया।मेजर शैतान सिंह ने अपने 120 सैनिकों के साथ उस हमले का सामना किया। उनकी कंपनी को चारों तरफ से घेर लिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति नहीं छोड़ी और आखिरी सांस तक लड़े।

साहस और बलिदान
मेजर शैतान सिंह ने अपनी टुकड़ी को प्रेरित किया और मोर्चे पर डटे रहे। अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए, वे चीनी सेना के सामने एक अभेद्य दीवार की तरह खड़े रहे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने सैनिकों को संगठित किया और लगातार हमलों का मुकाबला किया। अंततः वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनके अद्वितीय साहस और नेतृत्व के कारण उनकी टुकड़ी ने 1300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया।

युद्ध को खत्म हुए 3 महीने हो गए थे। ऐसे में शैतान सिंह के शव के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी। रेजांग ला की बर्फ पिघली और रेड क्रॉस सोसायटी और सेना के जवानों ने उन्हें खोजना शुरू किया। तब एक गड़रिये अपनी भेड़ चराने के लिए रेजांग की ओर जा रहा था वहीं बड़ी सी चट्टान में वर्दी में कुछ नजर आया। जिसके बाद उसने ये सूचना वहां मौजूद अधिकारियों को दी। 

गड़रिये की खबर के बाद जब सेना वहां पहुंची तो उन्होंने जो देखा उसे देखकर सबके होश उड़ गए।  एक-एक सैनिक उस दिन भी अपनी-अपनी बंदूकें थामे ऐसे बैठे थे जैसे मानो अभी भी लड़ाई चल रही हो। उनमें शैतान सिंह भी अपनी बंदूक थामे बैठे थे। वो ऐसे लग रहे थे जैसे मानो अभी भी युद्ध के लिए तैयार है। उनमें अभी भी जोश बाकी है। ये तो नहीं मालूम चल पाया कि युद्ध कितनी दे तक चला पर भारत के जवान अपनी अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते रहे और लड़ते लड़ते बर्फ की आगोश में आ गए।

सम्मान और स्मरण
मेजर शैतान सिंह की अद्वितीय वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनका बलिदान भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रेजांग ला की लड़ाई भारतीय सेना के वीरता और दृढ़ता का प्रतीक बन गई है। मेजर शैतान सिंह का जीवन और बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। उन्होंने अपने कर्तव्य, साहस और नेतृत्व का जो उदाहरण प्रस्तुत किया, वह सभी के लिए अनुकरणीय है। उनका नाम भारतीय सैन्य इतिहास में सदा अमर रहेगा।

 

 

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