Edited By Anu Malhotra,Updated: 05 Aug, 2024 12:19 PM
माता चिंतपूर्णी का मेला 2024 में सावन माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन (5 अगस्त 2024) से शुरू होगा और 13 अगस्त 2024 तक चलेगा। माता चिंतपूर्णी जो कि हिमाचल प्रदेश के गुना जिला में स्थित है। ऐसा मानना है कि इस मंदिर में जाने वाले सभी श्रद्धालुओं की चिंता...
नेशनल डेस्क: माता चिंतपूर्णी का मेला 2024 में सावन माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन (5 अगस्त 2024) से शुरू होगा और 13 अगस्त 2024 तक चलेगा। माता चिंतपूर्णी जो कि हिमाचल प्रदेश के गुना जिला में स्थित है। ऐसा मानना है कि इस मंदिर में जाने वाले सभी श्रद्धालुओं की चिंता को माता हर लेती है। इस मंदिर की रहस्यों की बात करें तो ऐसा मानना है कि माता चिंतपूर्णी का प्रसाद देहरा से आगे और ज्वाला जी मंदिर तक नहीं ले जाया जा सकता।
इस मान्यता के पीछे एक धार्मिक और आध्यात्मिक कारण है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रसाद को मंदिर क्षेत्र से बाहर लेकर जाता है तो उसके साथ कोई न कोई अनहोनी घटना घट जाती है। यह परंपरा और मान्यता श्रद्धालुओं में गहरे विश्वास के कारण प्रचलित है।
बता दें 9 माताओं में से मां चिंतपूर्णी सबसे छोटी बहन है। इसलिए छोटी बहन का प्रसाद बड़ी बहन तक नहीं जाता। इसी वजह से मां चिंतपूर्णी का प्रसाद मां ज्वाला तक नहीं पहुंचता। कई श्रद्धालुओं ने भी इसका अनुभव किया है।
नवरात्र के महीनों में माता चिंतपूर्णी यहां ज्योति के रूप में दर्शन देती हैं। इस दौरान कई श्रद्धालुओं ने इस ज्योति के दर्शन किए हैं और इसे एक दिव्य अनुभव माना जाता है। नवरात्रों के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होता है, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
माता चिंतपूर्णी का मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, जहां देवी दुर्गा की पूजा चिंताहरणी के रूप में की जाती है। मान्यता है कि माता चिंतपूर्णी का प्राकट्य एक 12-13 वर्षीय लड़की के रूप में हुआ था, जिनके साथ एक शेर था। यह घटना एक स्थानीय ब्राह्मण, माई दास, को हुई थी जब वे अपने ससुराल जा रहे थे और देवी ने उन्हें दर्शन देकर उन्हें पूजा करने का आदेश दिया था।
प्रसाद की मान्यता
माता चिंतपूर्णी का प्रसाद देहरा से आगे और ज्वाला जी मंदिर तक नहीं ले जाया जा सकता। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई ऐसा करता है, तो उसके साथ अनहोनी घटना घटती है। यह मान्यता श्रद्धालुओं में गहरे विश्वास और आस्था का प्रतीक है।
मंदिर का निर्माण और पूजा की परंपरा
माई दास के वंशज आज भी इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि देवी ने माई दास को मंदिर के निकट पानी का स्रोत बताया था और वहां पूजा करने का आदेश दिया था। इस स्थान पर पानी का स्रोत पाकर माई दास ने वहां एक छोटा सा छप्पर बनाया और पूजा-अर्चना शुरू की, जिससे यह स्थान धीरे-धीरे एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन गया।