'जिस समाज की प्रजनन दर 2.1 से कम हुई वो विलुप्त हो गए', मोहन भागवत ने की दो से अधिक बच्चों की पैरवी

Edited By rajesh kumar,Updated: 01 Dec, 2024 02:56 PM

mohan bhagwat advocated for having more than two children

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या वृद्धि दर (प्रजनन दर) में गिरावट पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यदि किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज धीरे-धीरे नष्ट होने की ओर बढ़ जाता है।

नेशनल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या वृद्धि दर (प्रजनन दर) में गिरावट पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यदि किसी समाज की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज धीरे-धीरे नष्ट होने की ओर बढ़ जाता है।

क्या है 2.1 प्रजनन दर का महत्व?
भारत में आदर्श प्रजनन दर 2.1 है, जिसका मतलब है कि एक महिला को अपने जीवनकाल में औसतन 2.1 बच्चे पैदा करने चाहिए। यह दर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित की गई है, ताकि किसी देश की जनसंख्या स्थिर रह सके। यदि यह दर 2.1 से नीचे चली जाए, तो जनसंख्या में असंतुलन का खतरा बढ़ जाता है।

भागवत ने कहा, "आधुनिक जनसंख्या विज्ञान बताता है कि जब प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो समाज नष्ट होने लगता है। यह समस्या संकट के बिना भी हो सकती है। इसी कारण, कई समाज और भाषाएं इतिहास में समाप्त हो चुकी हैं।"

दो से अधिक बच्चों की वकालत
मोहन भागवत ने जनसंख्या स्थिर रखने के लिए दो से अधिक बच्चों की वकालत की। उन्होंने कहा, "यदि हम 2.1 की प्रजनन दर चाहते हैं, तो हर परिवार में कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए। यह जनसंख्या विज्ञान भी कहता है। संख्या का महत्व है क्योंकि समाज को टिकाऊ बनाना जरूरी है।"

यह पहली बार नहीं है जब आरएसएस ने जनसंख्या संतुलन पर चिंता जताई हो। संघ लंबे समय से एक समान जनसंख्या नीति की वकालत करता रहा है। उनका मानना है कि असंतुलित जनसंख्या देश के लोकतंत्र और सामाजिक संरचना के लिए खतरा बन सकती है।

साल 2030 तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहेगा
जनसंख्याविदों का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक भारत की जनसंख्या घटकर 1.10 अरब रह जाएगी। वर्ष 2030 तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहेगा, लेकिन इसके बाद युवा जनसंख्या में गिरावट शुरू हो जाएगी।

केंद्र सरकार भी मानती है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाना अनिवार्य नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि परिवार नियोजन को अनिवार्य बनाने के बजाय, जागरूकता और स्वैच्छिक प्रयासों पर जोर दिया जाना चाहिए।

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