ग्लोबल वार्मिंग से जल चक्र हो रहा प्रभावित , भारत के 23 प्रतिशत जिलों में अस्थिर हुआ मानसून : राजीव आचार्य

Edited By Parveen Kumar,Updated: 27 Sep, 2024 08:30 PM

monsoon has become unstable in 23 percent of india s districts rajeev aacharya

इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन मुंबई के सदस्य और पर्यावरणविद राजीव आचार्य के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर पृथ्वी के जल चक्र पर पड़ता है।

नेशनल डेस्क : इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन मुंबई के सदस्य और पर्यावरणविद राजीव आचार्य के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर पृथ्वी के जल चक्र पर पड़ता है। तापमान में वृद्धि से महासागरों और अन्य जल स्रोतों से वाष्पीकरण बढ़ रहा है, जिससे वायुमंडल में अधिक नमी जमा हो रही है। इसका परिणाम यह होता है कि जिन क्षेत्रों में तूफान आते हैं, वहां अत्यधिक बारिश होती है, जिससे बाढ़ जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। वहीं दूसरी ओर उन स्थानों पर जहां तूफान नहीं आते, वहां बारिश की कमी से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

राजीव आचार्य कहते हैं कि वैश्विक जलवायु  परिवर्तन एक गंभीर खतरा बन गया है , जिसके कारण मानसून के पैटर्न में व्यापक बदलाव हो रहा है। अस्थिर मानसून के कारण कृषि, जल और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। राजीव आचार्य के अनुसार किए गए शोध और अध्ययन में यह उभर कर आया है कि पिछले 40 वर्ष में भारत के 23 प्रतिशत जिलों में मानसून अस्थिर होता चला गया है। इसका खुलासा CEEW द्वारा कराए गए एक अध्ययन में हुआ है। इस अध्ययन में जलवायु परिवर्तनों का नक्शा तैयार किया है ।

कुछ क्षेत्रों में 10 साल में 30% तक बढ़ गई बारिश

राजीव आचार्य कहते हैं कि जनवरी 2024 में नई दिल्ली में स्थित पब्लिक-पॉलिसी रिसर्च संस्थान काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) ने भारत के बदलते मानसून  पर एक रिसर्च प्रकाशित की है। इसे  भारत के अलग-अलग हिस्सों के तहसील स्तर पर किए गए आंकलन के बाद तैयार किया है। रिसर्च में बताया गया है कि पिछले 40 वर्षों (1982-2022) में कुल 23 प्रतिशत जिले ऐसे रहे जहां पर कि मानसून अस्थिर होता चला गया । इसमें मुख्य रूप से नई दिल्ली, बैंगलुरू, नीलगिरी, जयपुर, कच्छ और इंदौर  शामिल है। वहीं, दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण 55 प्रतिशत तहसीलों में 1982-2011 के दौरान जो बारिश हुई थी उसके मुकाबले पिछले दशक (2012-2022) में 10 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है। जबकि इसी समयावधि में 11 प्रतिशत तहसीलों में बारिश कम भी हुई है।

68 प्रतिशत तहसीलों में दिखी बारिश कम

राजीव आचार्य कहते हैं कि रिसर्च में बताया गया है कि पारंपरिक रूप से सूखी तहसीलों जैसे कि राजस्थान, गुजरात, केंद्रीय महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में अच्छी बारिश देखी गई। इधर, 68 प्रतिशत तहसीलों ने जून से सितंबर तक सभी महीनों में बारिश कम हुई। साथ ही 87 प्रतिशत तहसीलों में जून और जुलाई के शुरूआती मानसून महीनों के दौरान बारिश कम रही। जो खरीफ फसलों की बुआई के लिए काफी जरूरी होती है। पिछले दशक में 64 प्रतिशत भारतीय तहसीलों ने दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान भारी बारिश देखी है। असल में बारिश के दिनों में भी एक से 15 दिन तक की वृ​द्धि हुई है।

यह पैटर्न उन राज्यों की तहसीलों में देखने को मिला है जहां ​की जीडीपी ज्यादा है जैसे कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक। पिछले दस वर्ष में उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बारिश ज्यादा हुई है। वहीं, दूसरी ओर महाराष्ट्र और गोवा के पश्चिमी तट पर और ओडिशा, पश्चिम बंगाल के पूर्वी तट पर अक्टूबर से दिसंबर के दौरान भी बारिश में वृद्धि देखी गई। भारत की 48 प्रतिशत तहसीलों में अक्टूबर महीने में सामान्य से 10 प्रतिशत ज्यादा बारिश देखी है।जो ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की देर से वापसी के कारण हो सकती है।

NOAA की रिपोर्ट में बताए प्रभाव

राजीव आचार्य के अनुसार नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फीरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) द्वारा भी वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर जो फरवरी 2024 में रिपोर्ट जारी की गई है उसमें भी अलनीनो के प्रभाव को बताया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे विश्व में मौसम तेजी से बदल रहा है। इसमें देखने को मिला है कि विश्व के अधिकांश हिस्साें में इस वर्ष तापमान औसत से अधिक रहा है, तो दूसरी तरफ पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप के अधिकांश हिस्से में तापमान औसत से ठंडा था। NOAA ने बदलते मौसम को लेकर जारी की रिपोर्ट में बताया है कि 175 साल के रिकॉर्ड के अनुसार 2024 सबसे गर्म वर्ष होने की 22% संभावना है। वहीं, 79% संभावना है कि एल नीनो में भी साल के बीच में परिवर्तन देखने को मिलेगा।

राजीव आचार्य कहते हैं कि  वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में इसी तरह वृद्धि जारी रही तो आने वाले दशकों में बारिश के पैटर्न में और भी अस्थिरता देखने को मिलेगी।उनके अनुसार ग्लोबल वार्मिग पर जनचेतना की आवश्यकता दिनोदिन बढ़ती जा रही है। यदि हम समय रहते नही चेते तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। ग्लोबल वार्मिग से निपटने के लिए हमे पानी के बचाव और अधिक से अधिक वृक्षारोपण पर ध्यान देना होगा

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