Edited By Mahima,Updated: 30 Sep, 2024 09:34 AM
इस साल का मानसून उत्तर भारत के लिए ऐतिहासिक रहा, जिसमें 2013 के बाद 628 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई। 7.1% की वृद्धि के साथ, इसने किसानों को राहत दी, विशेषकर उत्तर प्रदेश में। हालांकि, भूजल की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। केंद्रीय भारत में भी बारिश...
नेशनल डेस्क: इस वर्ष का मानसून उत्तर भारत के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ है, क्योंकि मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2013 के बाद पहली बार इस क्षेत्र में 628 मिमी बारिश दर्ज की गई है। यह बारिश 11 सालों में सबसे अधिक है और उत्तर भारत के लिए इसे एक सफल मानसून सीजन माना जा रहा है। इस बार मानसून की बारिश ने देशभर में कई जगहों पर तबाही भी मचाई, लेकिन उत्तर भारत में यह स्थिति कुछ बेहतर रही है।
मानसून में कम बारिश
उत्तर भारत में 1 जून से 29 सितंबर तक के मौसम का विश्लेषण करते हुए पता चला है कि इस बार बारिश में 7.1% की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा पिछले कुछ वर्षों की तुलना में काफी सकारात्मक है, जब उत्तर भारत को अक्सर मानसून में कम बारिश का सामना करना पड़ा था। बारिश की इस बढ़ती मात्रा ने किसानों के लिए अच्छे संकेत पेश किए हैं, खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां यह मिट्टी की नमी को बनाए रखने में सहायक होगी।
बारिश की कमी के कारण भूजल स्तर में गिरावट
हालांकि, उत्तर भारत में भूजल की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में बारिश की कमी के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई है। इस वर्ष की बारिश ने निश्चित रूप से राहत प्रदान की है, लेकिन इसके बावजूद, देश के इस हिस्से को अभी भी जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
अन्य क्षेत्रों में बारिश का रिकॉर्ड
मध्य भारत में भी इस मानसून ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं। यहां सामान्य से लगभग 20% अधिक बारिश हुई है, जो कि 1165.6 मिमी है। यह आंकड़ा 2019 के बाद की सबसे अधिक बारिश है। 2019 में यहां 29% अधिक बारिश हुई थी। दक्षिण भारत में भी बारिश ने 14.3% अधिक मात्रा में 811.4 मिमी तक पहुँचकर अच्छा प्रदर्शन किया है। हालांकि, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में बारिश का स्तर सामान्य से 13.7% कम रहा है, जो उन क्षेत्रों के लिए चिंता का विषय है।
मौसम की गतिविधियों का विश्लेषण
मौसम विभाग ने अनुमान लगाया था कि प्रशांत महासागर में ला नीना और हिंद महासागर में सकारात्मक मौसमी गतिविधियों का प्रभाव पड़ेगा, लेकिन यह सही साबित नहीं हुआ। IMD के प्रमुख मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि इस मानसून सीजन में भूमध्यरेखीय तूफान MJO का प्रभाव बना रहा, जो जून के अंत से सितंबर के मध्य तक सक्रिय रहा। इसने बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर साइक्लोनिक सर्कुलेशन का निर्माण किया, जो बारिश के लिए जिम्मेदार रहा। इस साल का मानसून न केवल उत्तर भारत के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक सकारात्मक संकेत लेकर आया है। हालांकि भूजल स्तर की समस्या बनी हुई है, बारिश की इस बढ़ती मात्रा ने किसानों को उम्मीद दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में इन बारिशों का प्रभाव कृषि और जल संकट पर क्या होता है।