मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता मंजूर नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

Edited By Pardeep,Updated: 14 Jul, 2024 11:55 PM

muslim personal law board will challenge the decision of the supreme court

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने रविवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने संबंधी उच्चतम न्यायालय का फैसला इस्लामी कानून के खिलाफ है और बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को इस फैसले को पलटने के लिए सभी संभव कानूनी उपाय तलाशने के...

नई दिल्लीः ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने रविवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने संबंधी उच्चतम न्यायालय का फैसला इस्लामी कानून के खिलाफ है और बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को इस फैसले को पलटने के लिए सभी संभव कानूनी उपाय तलाशने के लिए अधिकृत किया। बोर्ड ने उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को राज्य के उच्च न्यायालय में चुनौती देने का भी निर्णय लिया। यहां अपनी कार्यसमिति की बैठक के बाद बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण पर उच्चतम न्यायालय का हालिया फैसला ‘‘इस्लामी कानून (शरीयत) के खिलाफ है।'' 

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि “धर्म तटस्थ” प्रावधान सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम कानून के तहत विवाहित हैं और तलाकशुदा हैं, तो सीआरपीसी की धारा 125 के साथ-साथ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 के प्रावधान लागू होते हैं। 

अदालत ने कहा कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के पास विकल्प है कि वे दोनों में से किसी एक कानून या दोनों कानूनों के तहत राहत मांगें। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ऐसा इसलिए है कि 1986 का अधिनियम सीआरपीसी की धारा 125 का उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि उक्त प्रावधान के अतिरिक्त है। बैठक के बाद जारी एक बयान में एआईएमपीएलबी ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद ने जिक्र किया था कि अल्लाह की निगाह में सबसे बुरा काम तलाक देना है, इसलिए शादी को बचाने के लिए सभी उपायों को लागू करना चाहिए और इस बारे में कुरान में जिन दिशा-निर्देशों का जिक्र है, उनका पालन करना चाहिए। 

बयान में कहा गया है कि अगर शादी को जारी रखना मुश्किल है तो मानव जाति के लिए समाधान के तौर पर तलाक की व्यवस्था की गई है। बयान के मताबिक, बोर्ड मानता है कि इस फैसले से उन महिलाओं के लिए और भी समस्याएं पैदा होंगी जो अपने पीड़ादायक रिश्ते से सफलतापूर्वक बाहर निकल चुकी हैं। बोर्ड के प्रवक्ता एस.क्यू.आर. इलियास ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एआईएमपीएलबी ने अपने अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी को यह सुनिश्चित करने के लिए अधिकृत किया है कि उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को ‘पलटने' के लिए सभी ‘कानूनी संवैधानिक और लोकतांत्रिक' उपायों को शुरू किए जाए। 

एआईएमपीएलबी की कार्यसमिति की बैठक के दौरान समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ एक प्रस्ताव सहित पांच प्रस्ताव पारित किए गए। बयान के मुताबिक, बोर्ड ने रेखांकित किया कि अनुच्छेद 25 के अनुसार सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, जो संविधान में दिया गया मौलिक अधिकार है। बयान में कहा गया है, ‘‘हमारे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक देश में, समान नागरिक संहिता अव्यावहारिक और अवांछनीय है'' और इसलिए, इसे लागू करने का कोई भी प्रयास राष्ट्र की भावना और अल्पसंख्यकों के लिए सुनिश्चित अधिकारों के खिलाफ है। इसमें कहा गया है कि इसलिए, केंद्र या राज्य सरकारों को समान नागरिक संहिता कानून का मसौदा तैयार करने से बचना चाहिए। 

बोर्ड ने दावा किया कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्णय ‘‘गलत और अनावश्यक'' है, तथा यह अल्पसंख्यकों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा के भी विरुद्ध है। बयान में कहा गया है कि इसलिए बोर्ड ने यूसीसी को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती देने का निर्णय लिया है तथा अपनी कानूनी समिति को याचिका दायर करने का निर्देश दिया है। इसमें कहा गया है कि बैठक में यह भी संकल्प लिया गया कि वक्फ संपत्तियां मुसलमानों द्वारा खास परोपकारी उद्दश्यों के लिए बनाई गई विरासत हैं, और इसलिए, सिर्फ उन्हें ही इसका एकमात्र लाभार्थी होना चाहिए। बोर्ड ने वक्फ कानून को कमजोर करने या खत्म करने के सरकार की किसी भी कोशिश की कड़ी निंदा की। 

प्रस्ताव में कहा गया कि संसदीय चुनावों के परिणामों से संकेत मिलता है कि देश की जनता ने ‘‘घृणा और द्वेष'' पर आधारित एजेंडे के प्रति अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त की है। बयान में कहा गया है, ‘‘उम्मीद है कि अब भीड़ द्वारा हत्या का उन्माद खत्म हो जाएगा। सरकार भारत के वंचित और हाशिए पर पड़े मुसलमानों और निचली जातियों के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल रही है।'' एक अन्य प्रस्ताव में बोर्ड ने उपासना स्थल अधिनियम के कार्यान्वयन पर जोर दिया। 

बयान में कहा गया है, “ यह बहुत चिंता की बात है कि निचली अदालतें ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह से जुड़े नए विवादों पर किस तरह से विचार कर रही हैं। बोर्ड का मानना है कि बाबरी मस्जिद पर अपना फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने साफ कहा था कि 'पूजा स्थल अधिनियम 1991' ने अब ऐसे सभी (मामलों के) दरवाजे बंद कर दिए हैं।” इसमें कहा गया है कि बोर्ड को उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय सभी नए विवादों और मामलों को समाप्त कर देगा। 

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