Edited By Ali jaffery,Updated: 03 May, 2021 04:13 PM
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों को विभाजन के समय हुए नरसंहार की याद दिलाने वाला बताया है। अदालत ने व्यापक पैमाने पर हुई हिंसा के दौरान दूसरे मजहब के एक लड़के पर हमला करने के आरोपी शख्स की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
नेशनल डेस्क: दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों को विभाजन के समय हुए नरसंहार की याद दिलाने वाला बताया है। अदालत ने व्यापक पैमाने पर हुई हिंसा के दौरान दूसरे मजहब के एक लड़के पर हमला करने के आरोपी शख्स की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। गिरफ्तारी के भय से, सिराज अहमद खान ने अदालत का रुख कर मामले में अग्रिम जमानत का अनुरोध करते हुए दावा किया कि उसे इसमें गलत तरीके से फंसाया गया और उसका कथित अपराध से कोई लेना-देना नहीं है।
अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि आरोपी के खिलाफ लगे आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और सांप्रदायिक दंगे की आग भड़काने एवं उसकी साजिश रचे जाने का पर्दाफाश करने के लिए उसकी मौजूदगी बहुत जरूरी है। पिछले साल फरवरी में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़पों के अनियंत्रित हो जाने से उत्तरपूर्व दिल्ली में सांप्रदायिक हिस्सा भड़क गई थी, जिसमें कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 200 लोग घायल हो गए थे। न्यायाधीश ने अपने 29 अप्रैल के आदेश में कहा, यह सबको पता है कि 24/25 फरवरी 2020 के मनहूस दिन उत्तरपूर्व दिल्ली के कुछ हिस्से सांप्रदायिक उन्माद की भेंट चढ़ गए, जो विभाजन के दिनों के नरसंहार की याद दिलाते हैं।
न्यायाधीश ने कहा, जल्द ही, दंगे जंगल की आग तरह राजधानी के क्षितिज तक फैल गए, नये इलाके इसकी चपेट में आ गए और बहुत सी मासूम जानें जाती रहीं। उन्होंने कहा कि मौजूदा मामले में, एक किशोर रमन पर दंगाई भीड़ ने 25 फरवरी को निर्मम तरीके से महज इसलिए हमला कर दिया था क्योंकि वह दूसरे समुदाय से था। न्यायाधीश ने कहा, मामले में जांच अधिकारी के जवाब से साफ है कि सीसीटीवी फुटेज में आवेदक अपने हाथों में भाला लिए साफ-साफ दिख रहा है और मामले में अन्य आरोपी उसके दो बेटे अरमान और अमन अब तक फरार हैं।