Edited By Rohini Oberoi,Updated: 18 Mar, 2025 09:19 AM

भारत सरकार स्टारलिंक पर स्पेक्ट्रम टैक्स लगा सकती है। पहले यह टैक्स जियो, एयरटेल जैसी कंपनियों से लिया जाता था लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया था। अब अगर सरकार की तरफ से स्टारलिंक पर यह टैक्स लगाया जाता है तो लोगों को स्टारलिंक की सेवाएं इस्तेमाल...
नेशनल डेस्क। भारत सरकार स्टारलिंक पर स्पेक्ट्रम टैक्स लगा सकती है। पहले यह टैक्स जियो, एयरटेल जैसी कंपनियों से लिया जाता था लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया था। अब अगर सरकार की तरफ से स्टारलिंक पर यह टैक्स लगाया जाता है तो लोगों को स्टारलिंक की सेवाएं इस्तेमाल करने के लिए अधिक पैसे चुकाने होंगे। यह सरकार का कदम स्टारलिंक के लिए एक और नई समस्या पैदा कर सकता है क्योंकि स्टारलिंक पहले ही सरकार के कुछ नियमों से जूझ रहा है जैसे इंटरनेट बंद करने और निगरानी से संबंधित मुद्दे।
स्टारलिंक को भारत सरकार से मिलेंगे टेलीकॉम सिग्नल
रिपोर्ट के अनुसार स्टारलिंक को अब भारत सरकार से टेलीकॉम सिग्नल मिलेंगे। नए नियमों के मुताबिक स्टारलिंक को भारत में अपनी कमाई का लगभग 3% हिस्सा स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने के लिए सरकार को देना होगा। खबर में यह बताया गया कि सैटेलाइट कंपनियों को स्पेक्ट्रम नीलामी में नहीं मिलेगा बल्कि इसे सीधे सरकार द्वारा दिया जाएगा। इस कारण उन्हें इसके उपयोग के लिए स्पेक्ट्रम यूज चार्ज देना होगा। फिलहाल यह तय किया जा रहा है कि यह शुल्क कितना होगा।
लाइसेंस शुल्क से अलग होगा स्पेक्ट्रम टैक्स
इसके साथ ही यह भी जानकारी सामने आई है कि 8% लाइसेंस शुल्क जो सभी टेलीकॉम कंपनियों को देना होता है वह स्पेक्ट्रम टैक्स से अलग होगा। सैटेलाइट कम्युनिकेशन कंपनियों को इसके लिए अतिरिक्त शुल्क भी देना होगा। यह शुल्क 3% से ज्यादा भी हो सकता है हालांकि इस पर अभी चर्चा चल रही है। सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की कीमत, उसका टेन्योर (अवधि) और अन्य टैक्स से जुड़े मामलों को अभी टेलीकॉम रेगुलेटर ट्राई अंतिम रूप दे रहा है। सूत्रों के मुताबिक ट्राई के अंदर चर्चाओं से यह निष्कर्ष निकला है कि सैटेलाइट कम्युनिकेशन कंपनियों पर स्पेक्ट्रम यूज चार्ज लगाना जरूरी होगा क्योंकि इन्हें प्रशासनिक रूप से तय कीमत पर स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाएगा।
TRAI जल्द ही सिफारिश देगा
ट्राई जल्द ही सैटेलाइट कम्युनिकेशन स्पेक्ट्रम आवंटन पर अपनी सिफारिश पेश करेगा। इसके बाद इन सिफारिशों पर टेलीकॉम विभाग (DoT) विचार करेगा। सिफारिशों का विश्लेषण करने के बाद DoT कुछ खास सवालों के साथ और जानकारी मांग सकता है। जब DoT संतुष्ट होगा तब इसे डिजिटल कम्युनिकेशंस कमीशन (DCC) के सामने रखा जाएगा। DCC की मंजूरी मिलने के बाद यह मामला कैबिनेट के सामने जाएगा।
अगर सरकार यह कदम उठाती है तो स्टारलिंक जैसी सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवाओं पर अतिरिक्त टैक्स लग सकता है जिससे इसके उपयोगकर्ताओं के लिए सेवाओं की लागत बढ़ सकती है। इसके अलावा स्पेक्ट्रम चार्ज का निर्धारण ट्राई द्वारा किया जा रहा है और इसके बाद सरकार की तरफ से इसे मंजूरी दी जाएगी।