Edited By Mahima,Updated: 21 Oct, 2024 05:04 PM
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-4 मिशन के लिए महत्वपूर्ण अपडेट साझा किया है। इस बार, दो उपग्रह एक ही रॉकेट से लॉन्च होंगे, जिसमें एक चेजर और दूसरा टारगेट होगा। ये उपग्रह 28,800 किमी प्रति घंटे की गति से डॉकिंग तकनीक का परीक्षण...
नेशनल डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-4 मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण घोषणा की है, जिसमें बताया गया है कि इस बार दो उपग्रहों को एक ही रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। यह दोनों उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में एक-दूसरे के साथ डॉकिंग तकनीक का परीक्षण करेंगे, जो चंद्रमा से नमूने वापस लाने के लिए आवश्यक है। इस मिशन की विशेषता यह है कि इसमें स्वचालित डॉकिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जो भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
docking technology की आवश्यकता
डॉकिंग तकनीक अंतरिक्ष अभियानों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह तकनीक विभिन्न अंतरिक्ष यानों को एक साथ जोड़ने की क्षमता प्रदान करती है, जो अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और मानव या कार्गो मिशनों के लिए अत्यावश्यक है। इसके माध्यम से अंतरिक्ष में कई मिशनों का संचालन संभव हो पाता है। चंद्रयान-4 मिशन में इस तकनीक का परीक्षण करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह भविष्य में और भी जटिल अंतरिक्ष मिशनों के लिए आधारभूत होगी।
चेजर और टारगेट उपग्रह
चंद्रयान-4 के तहत, दो उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे: एक को "चेजर" और दूसरे को "टारगेट" के रूप में नामित किया गया है। चेजर उपग्रह वह होगा जो लक्ष्य उपग्रह के करीब जाकर उसके साथ जुड़ने का प्रयास करेगा। यह प्रक्रिया पृथ्वी की कक्षा में 28,800 किमी प्रति घंटे की गति से होगी। जब दोनों उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो जाएंगे, तो चेजर उपग्रह टारगेट उपग्रह के करीब जाएगा और फिर डॉकिंग का परीक्षण करेगा। इस प्रक्रिया के बाद, दोनों उपग्रहों को अलग किया जाएगा और अन्य प्रयोग किए जाएंगे, जो इस तकनीक की क्षमता को दर्शाएंगे।
SpadeX mission की तैयारी
ISRO ने स्पैडएक्स मिशन की योजना बनाई है, जो दिसंबर में लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन चंद्रयान-4 के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे डॉकिंग तकनीक के परीक्षण को पूरा किया जा सकेगा। स्पैडएक्स मिशन के तहत, चेजर और टारगेट उपग्रह एक साथ एक ही रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। इन उपग्रहों का इंटीग्रेशन हैदराबाद की एक प्राइवेट एयरोस्पेस और रक्षा कंपनी, अनंत टेक्नोलॉजीज द्वारा किया गया है। यह कंपनी उपग्रहों की तकनीकी और संरचनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता प्रदान कर रही है।
ISRO के भविष्य के मिशन
ISRO ने 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई और 2035 तक एक पूर्ण रूप से कार्यात्मक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए यह आवश्यक है कि कई उपग्रहों को एक साथ जोड़ने की क्षमता विकसित की जाए, जो केवल डॉकिंग तकनीक के माध्यम से ही संभव है। चंद्रयान-4 मिशन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इसे सफलतापूर्वक संचालित करने से ISRO की अंतरिक्ष अन्वेषण की संभावनाएँ और भी बढ़ जाएंगी।
मिशन की तकनीकी विशेषताएँ
चंद्रयान-4 मिशन के तहत दो उपग्रहों का कुल भार लगभग 400 किलोग्राम होगा। यह उपग्रह पीएसएलवी रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किए जाएंगे। पीएसएलवी (Polar Satellite Launch Vehicle) ISRO का एक प्रमुख लॉन्च वाहन है, जो विभिन्न प्रकार के उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए जाना जाता है। चंद्रयान-4 में डॉकिंग तकनीक का प्रयोग इस बात का प्रमाण होगा कि भारत भविष्य के जटिल अंतरिक्ष अभियानों को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत का योगदान
चंद्रयान-4 मिशन भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल चंद्रमा की सतह पर किए जाने वाले अनुसंधानों में मदद मिलेगी, बल्कि यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए भी एक ठोस आधार तैयार करेगा। ISRO का यह प्रयास भारत को वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करेगा। इस प्रकार, चंद्रयान-4 मिशन केवल चंद्रमा की ओर एक कदम नहीं है, बल्कि यह भारतीय विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान करने वाला मिशन भी है। ISRO के वैज्ञानिक इस मिशन को लेकर अत्यधिक उत्साहित हैं और इसके सफल संचालन की उम्मीद कर रहे हैं।