Edited By Tanuja,Updated: 13 Oct, 2024 05:07 PM
: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक भविष्य इन दिनों संकट में है। हाल ही में टोरंटो-सेंट पॉल और मॉन्ट्रियल के उपचुनावों में....
International Desk: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक भविष्य इन दिनों संकट में है। हाल ही में टोरंटो-सेंट पॉल और मॉन्ट्रियल के उपचुनावों में मिली हार के बाद, लिबरल पार्टी के अंदर उनके नेतृत्व को लेकर असंतोष तेजी से बढ़ रहा है। पार्टी के कई सांसदों ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग की है, जिससे ट्रूडो की प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की संभावना पर सवाल उठने लगे हैं।
CBC न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, लिबरल पार्टी के कम से कम 20 सांसदों ने एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें जस्टिन ट्रूडो से इस्तीफा देने की मांग की गई है। हालिया उपचुनावों में हार ने इस असंतोष को और बढ़ा दिया है। संसद के फिर से शुरू होते ही सांसदों के बीच नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चर्चा तेज हो गई है। टोरंटो स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 30-40 सांसद ट्रूडो के इस्तीफे की मांग के लिए हस्ताक्षर करने को तैयार हैं। इन गुप्त बैठकों में सांसदों ने प्रधानमंत्री पर सार्वजनिक रूप से दबाव डालने की योजना बनाई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अभी असंतुष्ट सांसदों की संख्या इतनी नहीं है कि पार्टी में कोई बड़ा बदलाव हो सके। पार्टी के अंदर जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से विभाजन का खतरा भी मंडरा रहा है।
एक असंतुष्ट सांसद ने CBC को बताया कि यह दस्तावेज़ "बीमा नीति" की तरह है, ताकि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से पहले कोई कदम उठाया जा सके। हालांकि, सांसद इस बात से भी चिंतित हैं कि पार्टी में जल्दबाजी में लिया गया कोई फैसला और बड़ा विभाजन पैदा कर सकता है। वहीं, व्यापार मंत्री मैरी एनजी ने इस योजना पर निराशा जताई और कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री ट्रूडो पर पूरा भरोसा है। उन्होंने असंतोष फैलाने वाले सांसदों से असहमति जताई। इससे साफ है कि पार्टी में ट्रूडो को लेकर समर्थन और विरोध के बीच गहरी खाई बन रही है।
ट्रूडो के नेतृत्व पर उठ रहे सवालों के पीछे भारत के साथ उनका विवाद भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है। पिछले साल ट्रूडो ने खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारतीय एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में भारी तनाव आ गया। भारत ने कूटनीतिक स्तर पर कनाडा को कड़ी चुनौती दी, जिससे ट्रूडो की अंतरराष्ट्रीय छवि कमजोर हुई और वे अपने देश में भी अलग-थलग पड़ गए। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या जस्टिन ट्रूडो इस राजनीतिक असंतोष का सामना कर अपनी कुर्सी बचा पाएंगे? लिबरल पार्टी के अंदर बढ़ते असंतोष और भारत के साथ कूटनीतिक विवाद ने उनके राजनीतिक भविष्य पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रूडो इस चुनौती से कैसे निपटते हैं।