Edited By Anil dev,Updated: 17 Dec, 2018 12:12 PM
निचली से लेकर ऊपरी अदालत तक सभी निर्भया के आरोपियों को फांसी की सजा दे चुकी हैं, लेकिन अभी तक फांसी क्यों नहीं, निर्भया की मां के साथ सभी के जेहन में यह सवाल है। कानून के जानकारों ने इस केस को अभी तक ऐसा उलझाया हुआ है
नई दिल्ली(नवोदय टाइम्स): निचली से लेकर ऊपरी अदालत तक सभी निर्भया के आरोपियों को फांसी की सजा दे चुकी हैं, लेकिन अभी तक फांसी क्यों नहीं, निर्भया की मां के साथ सभी के जेहन में यह सवाल है। कानून के जानकारों ने इस केस को अभी तक ऐसा उलझाया हुआ है कि सजा होने के बाद भी इन्हें सजा नहीं दी जा सकी है। इसका सबसे बड़ा कारण क्यूरेटिव पिटिशन का दाखिल न होना है। हमारे कानून में इसी पिटिशन का उस समय महत्व बढ़ जाता है जब किसी व्यक्ति को फंासी की सजा दी जाती है। इसी का फायदा इन आरोपियों को सीधे तौर पर मिल रहा है। कानून के जानकारों के मुताबिक इस केस को कानून के जानकार ही लटका कर रखे हैं ताकि इनकी सजा को टाला जा सके।
फांसी में देरी का कारण
कानूनी प्रक्रिया के तहत अभी क्यूरेटिव पिटिशन और मर्सी पिटिशन दाखिल करने का मौका आरोपियों के पास है,जिसमें वे लगातार टाल रहें हैं। क्योंकि आरोपी सहित उनके बचाव पक्ष के कानून जानकार जानते हैं कि निर्भया केस में चारों मुजरिमों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है और तीन मुजरिमों की रिव्यू पिटिशन खारिज हो चुकी है। जबकि चौथे अक्षय की ओर से रिव्यू पिटिशन दाखिल नहीं की गई। जब तक इसकी पिटिशन पर निर्णय नहीं होता तब तक तीनों को फांसी नहीं दी सकती। इसी तरह अभी सभी की तरफ से क्यूरिटिव पिटिशन दाखिल किया जाना है। ये आरोपियों के पास बचाव
का आखिरी मौका है।
एक बड़ा पेंच, जिस पर निर्णय बाकी है
निर्भया केस में एक जुवेनाइल आरोपी भी था,जिसने खुद को जुवेनाइल घोषित करने की अर्जी दाखिल कर रखी है। मामला अभी कानूनी दावपेंच में उलझा हुआ है। इस पर अभी तक कोर्ट से कोई निर्णय नहीं आया है जिसके कारण अन्य आरोपियों को इसका फायदा मिल रहा है। जानकारी के मुताबिक जूवेनाइल की तरफ से डाली गई याचिका पर 21 दिसम्बर को सुनवाई होगी जिसके बाद ये तय होगा कि उसे क्या सजा दी जाएगी। बताया जाता है कि पवन और विनय की और से अभी वह क्यूरेटिव पिटिशन जनवरी में दाखिल की जाएगी, जिसके बाद उस पर निर्णय होगा। यानि की अभी इनकी फांसी में देरी है। इस संबंध में मुकेश के वकील एमएल शर्मा ने बताया कि आरोपी पक्ष की तरफ क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल किया जाना है। मुजरिमों के वकील ने कहा कि अभी उनके पास कानूनी उपचार बचा हुआ है। अगर क्यूरेटिव पिटिशन भी खारिज कर दिया जाता है तो फिर राष्ट्रपति के सामने मर्सी पिटिशन दाखिल किए जाने का प्रावधान है। अगर ये सभी प्रक्रिया खारिज होती हैं, तब आरोपियों को सजा दी सकती है।
बरसी को काले दिवस के रूप में मनाया
क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) के कार्यकर्ताओं ने रविवार 16 दिसम्बर को निर्भया रेप घटना की 6ठी बरसी के मौके पर काले दिवस के रूप में मनाया। कार्यकर्ताओं ने दिल्ली विश्वविद्यालय में महिलाओं, छात्राओं और आम लोगों को काली पट्टी बांधी, और महिला-बराबरी और सुरक्षा सम्बन्धित 22 मांगों का पर्चा बांटा। कार्यकर्ताओं और अभियान से जुडऩे वाले आम लोगों ने यह शपथ भी ली कि वह महिलाओं के यौन शोषण और काम की जगहों पर भेदभाव के खिलाफ आवाज़ बुलंद करेंगे। साथ ही, पुलिसिया उदासीनता, लचर न्यायिक प्रणाली, महिला-विरोधी सरकारी कदमों और असंवेदनशील मालिकों के खिलाफ वह महिलाओं को संगठित करेंगे।
एबीवीपी ने दी निर्भया को श्रद्धांजलि
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्टस फैकल्टी में निर्भया को श्रद्धांजलि अर्पित की। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो , इसके लिए इस तरह की घटनाओं के खिलाफ पूरे दृढ़ता के साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता प्रकट की। निर्भया कांड जैसी अत्यंत अमानवीय और वीभत्स घटना के आरोपियों को सजा दिलाने हेतु विद्यार्थी परिषद ने कई आंदोलन किए , साथ ही जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू करने के लिए सरकार को अपने आंदोलनों से मजबूर किया । एबीवीपी के प्रदेश मंत्री भरत खटाना ने कहा कि, निर्भया कांड जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसलिए विद्यार्थी परिषद अपने स्तर पर सक्रिय है। निर्भया कांड के आरोपियों को कड़ी सजा मिले इसके लिए हमने आंदोलन तो किया ही साथ ही मिशन साहसी जैसे अखिल भारतीय कार्यक्रम से विद्यार्थी परिषद ने लाखों छात्राओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दिया है।
स्वाति ने लिखा प्रधानमंत्री को पत्र
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति ने निर्भया घटना पर अपराधियों को फांसी की सजा ना होने पर नाराजगी जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश में महिला सुरक्षा पर उंगली उठाई है। उन्होंने लिखा है कि 16 दिसम्बर 2012 को हुई इस घटना ने हमारे देश के इतिहास के पन्नों पर कालिख लगा दी है जिसे मिटा पाना असंभव है। 6 साल बीतने के बाद भी देश में महिला सुरक्षा की स्थित जस की तस है। स्वाति ने लिखा कि देश की हजारों निर्भया आज भी न्याय की आस में तड़प रही हैं। फरवरी 2018 में दुधमुंही बच्ची से बलात्कार की घटना ने मुझे इतना झंझोर दिया कि मैं अनशन पर बैठी, अनशन के दसवें दिन कुछ मांगों में से एक मांग कि 12 साल तक की बच्चियों के बलात्कारियों को फांसी का प्रावधान मुख्य रूप से माना तो गया लेकिन वादे के अनुसार 3 महीने के अंदर इस कानून को लागू कराने के लिए देशभर में पुलिस के संसाधन बढ़ाने, जवाबदेही तय करने व फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने के काम को कागज़ों तक सिमटा दिया गया।