1 या 2 नहीं एक साथ 101 लोगों को सुना दी उम्रकैद की सजा... 10 साल पुराने केस में कोर्ट का बड़ा फैसला

Edited By Utsav Singh,Updated: 25 Oct, 2024 02:27 PM

not 1 or 2 but 101 people were sentenced to life imprisonment together

कर्नटाक के कोप्पल जिले की एक अदालत ने दलित समुदाय की बस्ती में आग लगाने के मामले में 101 लोगों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह फैसला राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि किसी अत्याचार के मामले में इतनी बड़ी संख्या...

कर्नाटक : कोप्पल जिले की एक अदालत ने दलित समुदाय की बस्ती में आग लगाने के मामले में 101 लोगों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह फैसला राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि किसी अत्याचार के मामले में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी गई है। इस मामले ने सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों के संदर्भ में गहरा प्रभाव डाला है। यह सजा गुरुवार को सुनाई गई, और यह राज्य के इतिहास में किसी अत्याचार के मामले में इतनी बड़ी संख्या में दोषियों को मिली पहली सजा है। सभी आरोपियों के परिवार के सदस्य कोप्पल अदालत परिसर में एकत्र हुए थे। जब पुलिस ने उन्हें जेल ले जाते समय देखा, तो उनकी आंखों में आंसू थे। सभी आरोपियों को कोप्पल जिला जेल में रखा जाएगा और बाद में उन्हें बल्लारी जेल में स्थानांतरित किया जाएगा।

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मामला का विवरण
यह मामला जाति आधारित हिंसा से संबंधित है, जो 28 अगस्त 2014 को गंगावती तालुका के मारकुंबी गांव में हुआ। इस घटना के दौरान, आरोपियों ने दलित समुदाय के लोगों के घरों में आग लगा दी थी। यह हिंसा नाई की दुकान और ढाबों में दलितों के प्रवेश को लेकर उत्पन्न विवाद के बाद शुरू हुई थी, जो धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण कर गई। इस घटना ने सामाजिक तनाव को और बढ़ा दिया और जातिगत भेदभाव के मुद्दों को उजागर किया।
घटना का कारण
गांव में छुआछूत पर सवाल उठाने वाले कुछ दलित युवकों की सक्रियता से नाराज होकर आरोपियों ने दलितों की बस्ती में घुसकर उनकी झोपड़ियों में आग लगा दी। इसके साथ ही, आरोपियों ने दलितों पर हमला भी किया और उनके घरों को नष्ट कर दिया। इस प्रकार की हिंसा ने गांव में भय और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया, जिससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर हो गया। यह घटना जातिगत भेदभाव और असमानता के खिलाफ एक गंभीर चेतावनी है।

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न्याय की प्रक्रिया
इस घटना के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस मामले में कुल 117 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 16 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। यह संख्या इस मामले की गंभीरता को उजागर करती है और समाज में व्याप्त जातिवाद की स्थिति को दर्शाती है। ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया और सामाजिक समानता की आवश्यकता को रेखांकित किया जाता है, जिससे यह साफ होता है कि समाज को भेदभाव और हिंसा के खिलाफ एकजुट होना होगा। कोप्पल की अदालत का यह निर्णय दलित अधिकारों की रक्षा और जातिवाद के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस फैसले से यह संदेश भी जाता है कि समाज में हिंसा और भेदभाव को किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जाएगा।

 

 

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