Edited By Pardeep,Updated: 26 Jan, 2019 06:01 AM
भाजपा द्वारा अपने दशक पुराने सहयोगी दल गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जी.जे.एम.) को खो देने के साथ ही ऐसा दिखाई देता है कि बागी भाजपा नेता यशवंत सिन्हा के लिए दार्जिलिंग लोकसभा सीट से चुनाव लडऩे के लिए रास्ता साफ हो गया है। यह भाजपा के लिए एक झटका होगा...
नेशनल डेस्कः भाजपा द्वारा अपने दशक पुराने सहयोगी दल गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जी.जे.एम.) को खो देने के साथ ही ऐसा दिखाई देता है कि बागी भाजपा नेता यशवंत सिन्हा के लिए दार्जिलिंग लोकसभा सीट से चुनाव लडऩे के लिए रास्ता साफ हो गया है। यह भाजपा के लिए एक झटका होगा क्योंकि पार्टी के उम्मीदवार एस.एस. आहलूवालिया जी.जे.एम. के समर्थन से ही इस लोकसभा सीट से जीते थे और मोदी सरकार में अब राज्यमंत्री हैं।
गोरखा नेतृत्व ने एस.एस. आहलूवालिया से पहले भाजपा के वयोवृद्ध नेता जसवंत सिंह का भी समर्थन किया था। जी.जे.एम. से भाजपा से समर्थन वापस लेने से उत्तरी बंगाल में कम से कम 4 लोकसभा सीटों में चुनावी गणित प्रभावित हो सकता है जिसमें प्रतिष्ठित दार्जिलिंग सीट शामिल है। यह भाजपा के लिए बड़ा आघात होगा जो पश्चिम बंगाल में अपना आधार बनाने की उम्मीद में है। मोर्चे के अध्यक्ष बिनय तमांग ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र सौंप कर उन्हें अपने फैसले से अवगत करवाया और तीसरा मोर्चा गठबंधन में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की।
तमांग ने मोर्चे के महासचिव अनित थापा के साथ विपक्षी दलों की रैली में हिस्सा लिया था। यह स्पष्ट है कि जी.जे.एम. ममता बनर्जी का साथ देगा जो यशवंत सिन्हा को इस सीट से चुनाव लड़वाने की इच्छुक हैं। यशवंत को यह फैसला लेना होगा कि क्या वह भाजपा को छोड़ दें या कुछ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रतीक्षा करें और उसके बाद टी.एम.सी. में शामिल हों। जी.जे.एम. चाहता है कि तीसरा मोर्चा चाय बगान और सिनसोना पौधारोपण वर्करों को भूमि का अधिकार दे।
यद्यपि चाय और सिनसोना बगान के वर्कर वर्षों से बागों में ही रह रहे हैं और उनको जमीन का अधिकार (पट्टा) प्राप्त नहीं है। भाजपा नेतृत्व सिन्हा की जोड़ी (यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा) के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए काफी सावधानी बरत रहा है। दोनों कोलकाता में टी.एम.सी. द्वारा प्रायोजित रैली में शामिल हुए थे और सरकार के खिलाफ बयानबाजी की थी।