70 वकीलों की गुजारिश पर CJI संजीव खन्ना ने कहा ‘नो प्लीज, नथिंग’, जानें क्या था पूरा मामला

Edited By Mahima,Updated: 02 Dec, 2024 03:28 PM

on the request of 70 lawyers cji sanjeev khanna said no please nothing

2 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 70 वकीलों को सीनियर एडवोकेट नामित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई की। इस दौरान CJI संजीव खन्ना ने मौखिक तर्कों को खारिज करते हुए वकीलों से पत्र लिखने को कहा। विवाद तब शुरू...

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर, 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 70 वकीलों को सीनियर एडवोकेट नामित करने के फैसले पर सुनवाई की। इस दौरान एक दिलचस्प घटनाक्रम सामने आया जब कुछ वकील मामले की त्वरित सुनवाई के लिए CJI Sanjiv Khanna से 30 सेकेंड का समय मांगने पहुंचे। हालांकि, CJI ने उनके आग्रह को अस्वीकार करते हुए मौखिक अपील पर ध्यान न देने का फैसला लिया। 

मामला क्या है?
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता (सीनियर एडवोकेट) के रूप में नामित किया था। इन वकीलों में संतोष त्रिपाठी, अनुराग अहलूवालिया, राजदीप बेहुरा, अनिल सोनी, अनुपम श्रीवास्तव, अभिजात, सुमित वर्मा, अमित चड्ढा, सुमित पुष्करण, साई दीपक जे और अरुंधति काटजू जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। हाईकोर्ट की एक स्थायी समिति ने इन वकीलों का मूल्यांकन किया और फिर उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर नामित किया। लेकिन यह प्रक्रिया विवादों में आ गई जब वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग, जो इस समिति के सदस्य भी थे, ने इस्तीफा देते हुए दावा किया कि वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामांकित वकीलों की सूची बिना उनकी सहमति से तैयार की गई थी। नंदराजोग के इस्तीफे ने इस प्रक्रिया को और विवादित बना दिया, और इस पर चुनौती दी गई।

CJI का रुख
जब मामले की याचिका सुप्रीम कोर्ट में पेश हुई, तो वकीलों ने मौखिक तौर पर तुरंत सुनवाई का अनुरोध किया। वकील ने CJI से कहा, "मायलॉर्ड, कृपया हमें 30 सेकेंड का वक्त दें, यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है।" वकील अपनी बात पूरी करने से पहले ही CJI Sanjiv Khanna ने उन्हें रोकते हुए कहा, "नो प्लीज, कुछ नहीं। आप एक पत्र फाइल कीजिए और फिर हम इसे देखेंगे।" CJI ने साफ किया कि मौखिक अपील के बजाय वकीलों को एक पत्र लिखकर मामला कोर्ट में प्रस्तुत करना होगा। इस तरह से CJI ने वकीलों को प्रक्रिया के अनुसार याचिका प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वकीलों द्वारा ऐसे मामले में मौखिक अपील करने की प्रथा को रोकने का निर्णय लिया था, और अब यह सुनिश्चित किया गया कि सभी मामलों में प्रक्रिया का पालन किया जाए।

वकील क्या चाहते थे?
70 वकीलों की ओर से इस मामले पर त्वरित सुनवाई की मांग की जा रही थी। उनका कहना था कि यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के नामांकन से जुड़ा है, और इसमें तुरंत कानूनी हस्तक्षेप की जरूरत है। वकीलों का तर्क था कि इस मामले में उचित निर्णय लिया जाना चाहिए, ताकि उनकी वरिष्ठता का मामला जल्दी सुलझ सके और वे अपने कानूनी कार्यों को बेहतर तरीके से कर सकें।

सीनियर नामांकन का विवाद
यह मामला तब और जटिल हो गया जब सुधीर नंदराजोग ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया था। उनका आरोप था कि समिति ने बिना उनकी सहमति के नामांकित वकीलों की सूची तैयार की। इस विवाद ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित करने की प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े कर दिए। इस स्थिति में याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई, जिसमें शीघ्र सुनवाई की अपील की गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट की स्थायी समिति ने 300 से अधिक वकीलों का मूल्यांकन किया था, और इसके बाद ही 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया। हालांकि, कुछ वकीलों के आवेदन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है, और अब उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 

CJI का फैसला
CJI Sanjiv Khanna ने वकीलों से कहा कि वे अपने मामले को ठीक से प्रस्तुत करने के लिए एक पत्र लिखें। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत केवल लिखित आवेदन पर ही मामले की सुनवाई करेगी, और मौखिक तौर पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा। यह पूरी घटना उस समय हुई जब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि सभी मामलों में उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। यह कदम सुप्रीम कोर्ट में मौखिक अपीलों के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया था।

आखिर क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को बाद में सूचीबद्ध करने का फैसला लिया। अदालत ने वकीलों से एक पत्र लिखने को कहा, जिसमें उन्हें शीघ्र सुनवाई के लिए अनुरोध करना था। अब यह देखना होगा कि अदालत अगले चरण में क्या फैसला करती है और इस मुद्दे का हल कब तक निकलता है। इस मामले में 70 वकीलों के नामांकन के पीछे न केवल कानूनी प्रक्रिया, बल्कि एक बड़ा संस्थागत विवाद भी छिपा है, जिसका असर पूरी अदालत प्रणाली पर पड़ सकता है।

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