Edited By Rohini Oberoi,Updated: 20 Mar, 2025 10:26 AM

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में आरोपियों के खिलाफ आरोपों में बदलाव करते हुए एक नया दृष्टिकोण पेश किया है। हाईकोर्ट ने कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र से जुड़े एक मामले में यह स्पष्ट किया कि आरोपियों द्वारा लड़की के प्राइवेट पार्ट को...
नेशनल डेस्क। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में आरोपियों के खिलाफ आरोपों में बदलाव करते हुए एक नया दृष्टिकोण पेश किया है। हाईकोर्ट ने कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र से जुड़े एक मामले में यह स्पष्ट किया कि आरोपियों द्वारा लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या रेप के प्रयास के तहत नहीं आता। अदालत ने इसे गंभीर यौन हमला करार दिया। इससे पहले आरोपियों के खिलाफ रेप (धारा 376) और पाक्सो अधिनियम की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
हाईकोर्ट ने इस मामले में रेप के प्रयास का आरोप सही नहीं पाया। न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ इस तरह का आरोप साबित करना मुश्किल था क्योंकि अभियोजन पक्ष को यह साबित करना पड़ता है कि आरोपियों की क्रियाएं अपराध की तैयारी से आगे बढ़ चुकी थीं। कोर्ट ने कहा कि रेप के प्रयास और अपराध की तैयारी में अंतर को सही तरीके से समझना चाहिए।
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निचली अदालत को दिए निर्देश हाईकोर्ट ने मामले की समीक्षा करते हुए पाया कि आरोपियों पर रेप के प्रयास का आरोप नहीं बनता। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 (बी) (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पाक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत आरोप लगाए जा सकते हैं। कोर्ट ने निचली अदालत को समन आदेश में संशोधन करने के निर्देश दिए और कहा कि आरोपियों के खिलाफ इन धाराओं के तहत नया समन जारी किया जाए।
कासगंज का मामला यह मामला कासगंज जिले के पटियाली थाना क्षेत्र का है जहां पवन और आकाश नामक दो आरोपियों ने 11 वर्षीय पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की थी। इस दौरान आकाश ने पीड़िता के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की लेकिन राहगीरों के हस्तक्षेप से आरोपियों को भागना पड़ा।
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ट्रायल कोर्ट ने इसे पाक्सो एक्ट के तहत रेप के प्रयास और यौन उत्पीड़न का मामला मानते हुए समन आदेश जारी किया था। हालांकि आरोपियों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। आरोपियों का कहना था कि यह मामला धारा 376 (बलात्कार) के तहत नहीं आता और केवल धारा 354 (बी) और पाक्सो अधिनियम के तहत आ सकता है।
वहीं हाईकोर्ट का यह फैसला इस बात को स्पष्ट करता है कि यौन अपराधों के मामलों में आरोपों को सही तरीके से और साक्ष्यों के आधार पर देखा जाना चाहिए।