Edited By Rohini Oberoi,Updated: 24 Apr, 2025 12:58 PM
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने एक बड़ी वारदात को अंजाम देते हुए 26 लोगों की जान ले ली है जिसमें कई अन्य घायल भी हुए हैं। इस भयावह हमले के बाद पीड़ितों ने जो आपबीती सुनाई है वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। कुछ लोगों के अनुसार आतंकियों ने...
नेशनल डेस्क। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने एक बड़ी वारदात को अंजाम देते हुए 26 लोगों की जान ले ली है जिसमें कई अन्य घायल भी हुए हैं। इस भयावह हमले के बाद पीड़ितों ने जो आपबीती सुनाई है वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। कुछ लोगों के अनुसार आतंकियों ने पहचान के लिए धर्म का सहारा लिया और 'कलमा' पढ़ने को कहा।
पीड़ितों का कहना है कि हमलावर सबसे पहले उनका नाम और धर्म पूछते थे। जो लोग मुस्लिम बताते थे उनसे आतंकी 'कलमा' पढ़ने के लिए कहते थे। चौंकाने वाली बात यह है कि जिन्होंने 'कलमा' पढ़ना शुरू कर दिया उन्हें आतंकियों ने गोली नहीं मारी। इस खुलासे के बाद हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर यह 'कलमा' क्या है जिसका जिक्र आतंकियों ने किया।
यह भी पढ़ें: सरकारी बैंक का धमाका! इस बैंक की FD में 2 लाख लगाओ, 91 दिन में शानदार रिटर्न पाओ, मिलेगा बंपर ब्याज
दरअसल 'कलमा' इस्लाम का एक बुनियादी और बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक तरह की धार्मिक शपथ है जो इस्लाम में प्रवेश करने की पहली शर्त मानी जाती है। उर्दू में इसे "ला इलाहा इल्लल्लाह" कहा जाता है जिसका अर्थ है "अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं।"
'कलमा' मुख्य रूप से दो हिस्सों में पढ़ा जाता है और इस्लाम को मानने वाले लगभग सभी लोगों को यह कंठस्थ होता है। वे इसका उच्चारण अपनी दैनिक प्रार्थनाओं और अन्य धार्मिक कार्यों में करते हैं।
यह भी पढ़ें: देश का सबसे बड़ा ऑपरेशन: नक्सलियों की खैर नहीं, 1,000 को घेरा, 5 को किया ढेर
फिलहाल इस जघन्य आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों की तलाश में सेना और पुलिस जुटी हुई है। उम्मीद है कि जल्द ही इन अपराधियों को उनके किए की सजा मिलेगी। इस घटना ने एक बार फिर आतंकवाद के धार्मिक पहलू को सामने ला दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर धर्म के नाम पर ऐसी क्रूरता को कैसे जायज ठहराया जा सकता है।