Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 17 Jan, 2025 08:31 PM
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भारत में तलाक के मामलों में हाल के वर्षों में तेजी देखी जा रही है। जहां एक तरफ मीडिया और सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटीज के तलाक की खबरें चर्चा का विषय बन रही हैं, वहीं समाज के विभिन्न वर्गों में तलाक के आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि...
नेशनल डेस्क: भारत में तलाक के मामलों में हाल के वर्षों में तेजी देखी जा रही है। जहां एक तरफ मीडिया और सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटीज के तलाक की खबरें चर्चा का विषय बन रही हैं, वहीं समाज के विभिन्न वर्गों में तलाक के आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या हिंदू धर्म के लोग ज्यादा तलाक लेते हैं या मुस्लिम धर्म के लोग? आइए, इस पर एक नज़र डालते हैं।
तलाक के आंकड़े में हिंदू बनाम मुस्लिम?
भारत की कुल आबादी 140 करोड़ के पार है और यहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर, अगर हम हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोगों में तलाक के मामलों की बात करें, तो मुस्लिम महिलाओं का तलाक दर कुछ ज्यादा दिखता है।
- मुस्लिम महिलाओं में तलाक की दर: 1,000 मुस्लिम महिलाओं में से करीब 6.5% महिलाएं तलाकशुदा हैं।
- हिंदू महिलाओं में तलाक की दर: हिंदू महिलाओं में यह आंकड़ा 6.9% है।
यानी, तलाक के मामले हिंदू और मुस्लिम धर्म के बीच लगभग बराबरी के हैं, लेकिन मुस्लिम महिलाओं का प्रतिशत थोड़ा अधिक है।
इसके अलावा, अगर हम पुरुषों के आंकड़ों को देखें तो 1 लाख मुस्लिम पुरुषों में 1590 तलाकशुदा होते हैं, जबकि हिंदू पुरुषों में यह आंकड़ा 1470 है।
कौन सा धर्म है सबसे आगे तलाक के मामले में?
अगर हम तलाक और अलगाव के मामले में दूसरे धर्मों की बात करें, तो यहां एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आती है।
- ईसाई धर्म: ईसाई धर्म में तलाक की दर 16.6% है।
- बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म में तलाक की दर 17.6% है।
यह आंकड़े हिंदू और मुस्लिम धर्म के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। मतलब, ईसाई और बौद्ध धर्म में तलाक और अलगाव के मामले लगभग दोगुने हैं।
क्या कारण हो सकते हैं?
तलाक के मामलों में इतनी विविधता के पीछे कई कारण हो सकते हैं। समाज में बदलते रिश्तों की परिभाषाएं, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और शादीशुदा जीवन में तनाव बढ़ने के कारण तलाक की संख्या में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा, सामाजिक और कानूनी प्रक्रिया में बदलाव, जैसे तलाक के लिए आसान कानूनी रास्ते और शादी के प्रति बढ़ती अनिच्छा भी इस बढ़ती दर का कारण हो सकती है।