पालतू कुत्ते बिट्‍टो का किया अंतिम संस्कार, फिर गंगा में विसर्जित की अस्थियां, तेरहवीं भोज का अनोखा आयोजन

Edited By Mahima,Updated: 08 Oct, 2024 11:39 AM

pet dog bitto s last rites were performed then the ashes were immersed in ganga

झांसी में संजीव और माला ने अपने पालतू कुत्ते बिट्‍टो की मौत के बाद उसकी तेरहवीं का आयोजन किया। 13 साल तक बिट्‍टो और पायल उनके परिवार का हिस्सा रहे। बिट्‍टो ने एक बार संजीव को सांप से बचाया था। उसके निधन से दंपति को गहरा सदमा लगा। प्रयागराज जाकर...

नेशनल डेस्क: उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में एक दिल को छू लेने वाली घटना हुई है, जहां एक पालतू कुत्ते की मौत के बाद उसके मालिक ने उसकी तेरहवीं का आयोजन किया। यह अनूठी कहानी रक्सा थाना क्षेत्र के ग्राम सिजवाह से शुरू होती है, जहां संजीव सिंह परिहार और उनकी पत्नी माला का निवास है। दंपति के कोई संतान नहीं है, इसलिए उन्होंने अपने पालतू कुत्तों को अपने बच्चों की तरह मान लिया।

बिट्‍टो और पायल का सफर
संजय और माला ने 13 साल पहले पोमेरेनियन नस्ल के दो कुत्ते घर लाए थे। इनमें से एक का नाम बिट्‍टो और दूसरे का नाम पायल रखा गया। जैसे-जैसे दोनों कुत्ते बड़े होते गए, दंपति का उनसे लगाव भी बढ़ता गया। माला बताती हैं कि बिट्‍टो और पायल उनके जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से बन गए थे। 

पालतू जानवर नहीं, रक्षक भी
कुछ समय पहले, एक खास घटना ने संजीव और माला को बिट्‍टो के प्रति और भी संवेदनशील बना दिया। एक दिन, जब संजीव घर के बाहर थे, तब एक सांप उनकी ओर बढ़ने लगा। बिट्‍टो ने तुरंत सांप पर नजर डाली और उसे मार दिया, जिससे संजीव की जान बच गई। इस घटना ने दंपति को यह एहसास दिलाया कि बिट्‍टो केवल एक पालतू जानवर नहीं, बल्कि उनका रक्षक भी है। इस घटना के बाद से संजीव और माला ने बिट्‍टो और पायल को अपने बच्चों की तरह ही मानना शुरू कर दिया।

बिट्‍टो गंभीर रूप से घायल 
लेकिन, 24 अक्टूबर को एक दुखद घटना हुई। उस दिन दोनों कुत्ते घर के पास घूम रहे थे, तभी कुछ आवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। पायल किसी तरह भागकर घर लौट आई, लेकिन बिट्‍टो गंभीर रूप से घायल हो गया। संजीव को जैसे ही इस बात की सूचना मिली, उन्होंने तुरंत बिट्‍टो को झांसी पशु चिकित्सालय में ले जाने का फैसला किया। चिकित्सकों ने काफी प्रयास किए, लेकिन बिट्‍टो की जान नहीं बचाई जा सकी। इस हादसे ने दंपति को गहरे सदमे में डाल दिया।

रो-रोकर हुआ बुरा हाल 
बिट्‍टो की मौत के बाद संजीव और माला का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। दोनों ने दो-तीन दिन तक खाना नहीं खाया और लगातार बिट्‍टो की याद में डूबे रहे। अंततः संजीव ने बिट्‍टो की तेरहवीं करने का निर्णय लिया। यह केवल एक रस्म नहीं थी, बल्कि उनके लिए बिट्‍टो को एक सम्मान देने का एक तरीका था। संजय ने बिट्‍टो की अस्थियों को लेकर प्रयागराज जाने का निश्चय किया। वहां उन्होंने गंगा नदी में बिट्‍टो की अस्थियों का विसर्जन किया। इस दौरान उन्होंने गंगाजी के किनारे पूजा-पाठ भी किया। 

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तेरहवीं भोज का आयोजन
प्रयागराज से लौटने के बाद, संजीव और माला ने अपने घर पर बिट्‍टो की तेरहवीं का आयोजन किया। यह आयोजन एक भव्य भोज के रूप में था, जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। दंपति ने अपने मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को आमंत्रित किया। भोज में विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किए गए, और सभी ने बिट्‍टो की याद में भोजन किया। यह आयोजन पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गया। कई लोगों ने इस दंपति की भावनाओं की सराहना की और उनके इस अनोखे कदम को लेकर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। 

समाज पर प्रभाव
दंपति की इस भावनात्मक कहानी ने सभी को यह सिखाया कि पालतू जानवर केवल जानवर नहीं होते, बल्कि वे हमारे परिवार का एक अभिन्न हिस्सा होते हैं। उनकी खुशी और दुख में हम भी शामिल होते हैं। संजीव और माला की प्रेम कहानी ने यह दर्शाया कि कैसे एक पालतू जानवर इंसान के जीवन में प्यार और सहानुभूति का स्रोत बन सकता है।

बिट्‍टो की तेरहवीं ने न केवल संजीव और माला के जीवन को छुआ, बल्कि पूरे समुदाय को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि हर जीव का अपने मालिक के प्रति एक खास स्थान होता है। इस प्रकार के भावनात्मक क्षण हमारे समाज में मानवता और सहानुभूति की भावना को बढ़ाते हैं। दंपति ने एक अद्वितीय तरीके से बिट्‍टो को श्रद्धांजलि देकर यह साबित कर दिया कि प्रेम और समर्पण का कोई मोल नहीं होता।

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