Edited By Parveen Kumar,Updated: 23 Mar, 2025 06:08 PM

लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर कई राज्यों में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। तमिलनाडु समेत कई राज्यों को सीटें घटने का डर सता रहा है, वहीं सरकार के सामने दो नए फॉर्मूले पेश किए गए हैं।
नेशनल डेस्क : लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर कई राज्यों में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। तमिलनाडु समेत कई राज्यों को सीटें घटने का डर सता रहा है, वहीं सरकार के सामने दो नए फॉर्मूले पेश किए गए हैं।
दो नए फॉर्मूले क्या हैं?
लोकसभा सीटों में 33% बढ़ोतरी
- महिला आरक्षण के तहत हर राज्य में लोकसभा सीटें 33% बढ़ा दी जाएं।
- इससे कुल सीटें 725 हो जाएंगी और SC-ST आरक्षित सीटें भी बढ़ेंगी।
मतदाता संख्या के आधार पर परिसीमन
- राज्यों की जनसंख्या की बजाय वहां के मतदाताओं की संख्या के आधार पर परिसीमन हो।
- इससे लोकसभा की सीटें 543 से बढ़कर 738 हो जाएंगी, जिनमें से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी।
सीटों में बढ़ोतरी क्यों जरूरी?
- 1971 में भारत की आबादी 55 करोड़ थी, तब लोकसभा में 543 सीटें तय की गई थीं, लेकिन अब देश की आबादी 145 करोड़ हो चुकी है।
- बढ़ती आबादी के चलते एक सांसद पर 20-28 लाख लोगों का भार आ गया है।
दुनिया के अन्य देशों में अधिक सीटें हैं
- ब्रिटेन (6.73 करोड़ की आबादी, 650 सीटें)
- फ्रांस (6.56 करोड़ की आबादी, 577 सीटें)
- जर्मनी (8.34 करोड़ की आबादी, 736 सीटें)
परिसीमन का विरोध क्यों?
पंजाब और दक्षिण भारत में विरोध
- पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि परिसीमन अलोकतांत्रिक है और बीजेपी सिर्फ उन्हीं राज्यों की सीटें बढ़ा रही है, जहां उसे फायदा हो सकता है।
- दक्षिण भारत में जनसंख्या नियंत्रण लागू होने के बावजूद सीटें घटाने का विरोध किया जा रहा है।
शिरोमणि अकाली दल (SAD) का प्रस्ताव
- SAD नेताओं ने कहा कि जनसंख्या आधार पर राज्यों को लोकसभा में अतिरिक्त सीटें मिलनी चाहिए।
- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के सम्मेलन में भी परिसीमन के विरोध में आवाज उठी।