Edited By Rahul Singh,Updated: 29 Dec, 2024 01:44 PM
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद अब उनके समाधि स्थल बनाए जाने को लेकर सियासी विवाद खड़ा हो गया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि आज तक सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का अंतिम संस्कार अधिकृत समाधि स्थलों में किए गए...
नेशनल डेस्क: देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों और बड़े नेताओं के स्मारकों के निर्माण को लेकर समय-समय पर विवाद और राजनीति होती रही है। वर्तमान में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक को लेकर चर्चाएं तेज हैं। वहीं, इसी संदर्भ में शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के स्मारक को लेकर साल 2012 में हुए राजनीतिक विवाद की यादें ताजा हो जाती हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक के निर्माण की जिम्मेदारी सीपीडब्लूडी को सौंपी गई है। हालांकि इस प्रक्रिया का मुख्य दायित्व भूमि और विकास विभाग पर है, जो दिल्ली में केंद्र सरकार की संपत्तियों का प्रबंधन करता है। स्मारक के निर्माण के लिए एक विशेष ट्रस्ट का गठन अनिवार्य है और इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को सहमति जताई गई। सूत्रों के अनुसार, स्मारक के लिए स्थान चयन, निर्माण और रखरखाव के लिए सभी प्रक्रियाएं तय नियमों के अनुसार होंगी। राष्ट्रीय स्मृति स्थल के लिए सामूहिक स्मारक मैदान बनाने का निर्णय कांग्रेस सरकार के दौरान ही साल 2013 में लिया गया था, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे।
बालासाहेब के स्मारक बनने में भी हुई थी राजनीति
दूसरी ओर बालासाहेब ठाकरे के स्मारक को लेकर 2012 में शिवसेना और कांग्रेस के बीच बड़ा राजनीतिक विवाद देखने को मिला। शिवसेना चाहती थी कि ठाकरे का अंतिम संस्कार दादर स्थित शिवाजी पार्क में हो, लेकिन कांग्रेसनीत महाराष्ट्र सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। शिवसेना ने दबाव बनाया और चेतावनी दी कि वे ठाकरे का पार्थिव शरीर शिवाजी पार्क में रख देंगे। अंततः, कांग्रेस को झुकना पड़ा और शिवाजी पार्क में ही ठाकरे का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया था। अंतिम संस्कार के बाद शिवसेना ने शिवाजी पार्क में अस्थायी समाधि बना दी थी और वहां स्मारक की मांग उठाई थी। लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। साल 2014 में भाजपा सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिवाजी पार्क के पास मेयर बंगले में स्मारक स्थल के लिए जगह उपलब्ध कराई।
स्मारकों की राजनीति में सम्मान या रस्साकशी?
मनमोहन सिंह और बालासाहेब ठाकरे जैसे दिग्गज नेताओं के स्मारकों पर हुए विवाद यह दिखाते हैं कि स्मारक न केवल श्रद्धांजलि का माध्यम हैं बल्कि राजनीतिक रस्साकशी का भी केंद्र बनते रहे हैं। जहां मनमोहन सिंह के स्मारक को लेकर अब कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाएं चर्चा में हैं, वहीं बालासाहेब के स्मारक के लिए शिवसेना का संघर्ष यह साबित करता है कि राजनीति, विचारधारा और शक्ति संतुलन का इस प्रक्रिया में कितना गहरा दखल रहता है। देखा जायें तो स्मारकों के जरिए नेताओं की विरासत को संजोने की कोशिश होती है, लेकिन यह भी साफ है कि उनके निर्माण की प्रक्रिया में सम्मान से ज्यादा राजनीति हावी रहती है।