Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 07 Jan, 2025 05:38 PM
साल 1956 से 1972 तक दिल्ली में केंद्रीय शासन था, जिसका मतलब था कि दिल्ली के प्रशासन और शासन का पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथों में था। यह वह समय था जब दिल्ली को पूर्ण रूप से एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में देखा जाता था।
नेशनल डेस्क: साल 1956 से 1972 तक दिल्ली में केंद्रीय शासन था, जिसका मतलब था कि दिल्ली के प्रशासन और शासन का पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथों में था। यह वह समय था जब दिल्ली को पूर्ण रूप से एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में देखा जाता था। इस दौर में दिल्ली के प्रशासन में कोई स्थानीय मुख्यमंत्री या विधानसभा नहीं थी। केंद्रीय सरकार ने अपने अधीन लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासनिक प्रमुख नियुक्त किया था, जो सीधे प्रधानमंत्री के नियंत्रण में काम करता था।
मुख्यमंत्री का पद समाप्त
साल 1956 में दिल्ली विधानसभा को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद भी समाप्त कर दिया गया। इसके बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर का कार्यालय ही दिल्ली के प्रशासन का सर्वोच्च निकाय बन गया। मुख्यमंत्री के स्थान पर अब लेफ्टिनेंट गवर्नर के तहत केंद्रीय मंत्रियों का आदेश और नियंत्रण होता था। इससे दिल्ली के निवासी अपने स्थानीय प्रशासन से सीधे जुड़ नहीं पाते थे और उनके निर्णय केंद्र सरकार के निर्देशों पर आधारित होते थे।
लेफ्टिनेंट गवर्नर की भूमिका और शक्तियाँ
दिल्ली के प्रशासन में लेफ्टिनेंट गवर्नर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। उन्हें केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता था और वह दिल्ली के लिए नीति निर्माण, प्रशासन और विकास कार्यों को लागू करने में जिम्मेदार होते थे। लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास सभी स्थानीय निर्णय लेने की ताकत थी, लेकिन उनका काम केंद्र सरकार के निर्देशों के अधीन होता था। केंद्र सरकार के मंत्रियों द्वारा तय की गई नीतियाँ और योजनाएं ही दिल्ली में लागू होती थीं, और इसका बड़ा असर दिल्लीवासियों की रोज़मर्रा की जिंदगी पर पड़ता था।
केंद्रीय सरकार की नीतियाँ और दिल्ली में उनके प्रभाव
साल 1956 से 1972 तक दिल्ली में केंद्रीय शासन की नीतियों का गहरा प्रभाव पड़ा। इस दौरान दिल्ली की शहरी योजनाओं, विकास कार्यों और सामाजिक नीतियों का मुख्य रूप से निर्धारण केंद्र सरकार करती थी। दिल्ली में केंद्रीय योजनाओं का असर हर क्षेत्र में देखा जाता था, चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, या फिर विकास के अन्य पहलू। उदाहरण के लिए, दिल्ली में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की नीतियाँ केंद्र सरकार ने निर्धारित की, जिसका उद्देश्य दिल्ली को एक आधुनिक और विकसित शहर बनाना था। हालांकि, इसका मतलब यह भी था कि दिल्लीवाले अपने स्थानीय मुद्दों पर निर्णय लेने में असमर्थ थे और उन्हें दिल्ली के लिए निर्धारित योजनाओं का पालन करना पड़ता था।
साल 1956 से 1972 तक दिल्ली का प्रशासन केंद्रीय सरकार के द्वारा नियंत्रित किया गया, और यह समय दिल्लीवासियों के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण था। मुख्यमंत्री और विधानसभा की अनुपस्थिति के कारण दिल्लीवाले अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे, और उनका प्रशासन पूरी तरह से केंद्र सरकार के नियंत्रण में था। इस दौर ने दिल्ली में शासन व्यवस्था और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और यह उस समय का महत्वपूर्ण इतिहास है।