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प्रयागराज महाकुंभ 2025 : भोगली बिहू की ऐतिहासिक शुरुआत, संगम तट पर पूर्वोत्तर भारत के संस्कृति की रंगीन झलक दिखी

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 14 Jan, 2025 06:05 PM

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प्रयागराज में इस साल आयोजित महाकुंभ में एक अनोखा और ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला। पहली बार महाकुंभ में पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध और जीवंत संस्कृति की झलक देखने को मिली, जिसमें असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की पारंपरिक संस्कृति का शानदार प्रदर्शन...

नेशनल डेस्क : प्रयागराज में इस साल आयोजित महाकुंभ में एक अनोखा और ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला। पहली बार महाकुंभ में पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध और जीवंत संस्कृति की झलक देखने को मिली, जिसमें असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की पारंपरिक संस्कृति का शानदार प्रदर्शन हुआ। इस उत्सव का मुख्य आकर्षण 'भोगली बिहू' रहा, जिसे खासतौर पर मकर संक्रांति के मौके पर मनाया गया। भोगली बिहू, जो असम का प्रसिद्ध त्यौहार है, इस बार महाकुंभ का हिस्सा बना। मकर संक्रांति के दिन, पूर्वोत्तर के संतों द्वारा आयोजित प्राग ज्योतिषपुर शिविर में इस खास कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न राज्यों से आई महिला श्रद्धालुओं ने पारंपरिक बिहू नृत्य प्रस्तुत किया, जिसने महाकुंभ में असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर किया।

पारंपरिक बिहू नृत्य कैसे हुई?

इस उत्सव की शुरुआत चावल से बने विभिन्न व्यंजनों के वितरण से हुई। इन व्यंजनों को भोग के रूप में भक्तों में बांटा गया। इसके बाद, नामघर में नाम कीर्तन हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने मिलकर भक्ति गीत गाए। महिला श्रद्धालुओं ने बिहू नृत्य के माध्यम से महाकुंभ के मैदान को रंगीन बना दिया। उनके नृत्य ने माहौल को एक नई ऊर्जा दी और दर्शकों को पूर्वोत्तर की पारंपरिक संस्कृति से जुड़ने का अवसर प्रदान किया।

इस उत्सव में एक और खास बात रही, जब मंगलवार की सुबह, असम की पारंपरिक संरचनाओं को जलाने की रस्म निभाई गई। इन संरचनाओं में धान के भूसे से बने भेलाघर और बांस से बनी मेजी शामिल थीं। इनका जलाना भोगली बिहू का अहम हिस्सा होता है, जो समृद्धि और समृद्ध धान की फसल के लिए शुभ संकेत होता है।

महाकुंभ में असम की संस्कृति को मिली पहचान 

महाकुंभ में भोगली बिहू के आयोजन को लेकर असम के महामंडलेश्वर स्वामी केशव दास जी महाराज ने गर्व महसूस किया। उन्होंने कहा, "यह पहल असमिया और पूर्वोत्तर संस्कृति को महाकुंभ के माध्यम से दुनिया के सामने लाने का एक शानदार अवसर है। इससे महाकुंभ का सामाजिक और सांस्कृतिक दायरा और भी व्यापक हुआ है।" इस ऐतिहासिक उत्सव में क्षेत्र के संत, भक्त और साधक भी सक्रिय रूप से शामिल हुए, जिससे यह महाकुंभ का एक अविस्मरणीय हिस्सा बन गया।

संस्कारों और परंपराओं का मिलाजुला संगम

महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक प्रभावशाली साबित हुआ। भोगली बिहू के उत्सव ने महाकुंभ को एक नए आयाम पर पहुंचाया, जहां भारत के विभिन्न हिस्सों की संस्कृति और परंपराएं एक साथ मिलकर उसे और भी विविधतापूर्ण बना देती हैं।
 

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