Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 09 Jan, 2025 12:40 PM
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महाकुंभ न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अद्वितीय आयोजन है। संगम की यह पावन भूमि सनातन संस्कृति की समृद्ध धरोहर को सजीव रूप में प्रस्तुत करती है।
नेशनल डेस्क: सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष महत्व है। इसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है। यह चार पवित्र तीर्थस्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। कुंभ मेला तीन प्रकार का होता है—अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ। 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने वाला है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से ऐतिहासिक होगा।
अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में अंतर
अर्द्धकुंभ मेला
अर्द्धकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक छह वर्ष में होता है। यह केवल प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।
कुंभ मेला
कुंभ मेले का आयोजन 12 वर्ष में एक बार होता है। यह प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित होता है।
महाकुंभ मेला
जब प्रयागराज में 12 बार कुंभ का आयोजन हो जाता है, तब महाकुंभ का आयोजन होता है। यह आयोजन 144 वर्षों में एक बार होता है। साल 2025 का महाकुंभ इसी ऐतिहासिक क्रम में होने जा रहा है।
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महाकुंभ 2025 का कार्यक्रम और शाही स्नान
साल 2025 के महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 से होगी और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर होगा। इसमें छह प्रमुख शाही स्नान होंगे:
13 जनवरी: पौष पूर्णिमा
14 जनवरी: मकर संक्रांति
29 जनवरी: मौनी अमावस्या
3 फरवरी: बसंत पंचमी
12 फरवरी: माघी पूर्णिमा
26 फरवरी: महाशिवरात्रि
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12 ज्योतिर्लिंग आकर्षण का केंद्र
इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं के आकर्षण का मुख्य केंद्र साढ़े पांच करोड़ रुद्राक्ष से बनाए जा रहे 12 ज्योतिर्लिंग होंगे। इनकी ऊंचाई 11 फीट और चौड़ाई 9 फीट होगी। इन्हें डमरू और 11,000 त्रिशूल से सजाया जा रहा है। यह अनूठा ज्योतिर्लिंग अमेठी स्थित संत परमहंस आश्रम के शिविर में स्थापित किया जाएगा। इन 12 ज्योतिर्लिंगों के माध्यम से अखंड भारत और विश्व कल्याण का संदेश दिया जाएगा। इन्हें बनाने में नेपाल और मलेशिया से मंगवाए गए रुद्राक्ष का उपयोग किया गया है। श्रद्धालु इनका दर्शन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक कर सकेंगे।