Edited By Rahul Rana,Updated: 20 Nov, 2024 02:05 PM
भारतीय नौसेना ने अपनी समुद्री सुरक्षा की ताकत और तटीय सुरक्षा को जांचने के लिए ‘सी विजिल-2024’ अभ्यास की पूरी तैयारी कर ली है। यह अभ्यास 20 और 21 नवंबर को पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है।
नॅशनल डेस्क। भारतीय नौसेना ने अपनी समुद्री सुरक्षा की ताकत और तटीय सुरक्षा को जांचने के लिए ‘सी विजिल-2024’ अभ्यास की पूरी तैयारी कर ली है। यह अभ्यास 20 और 21 नवंबर को पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है।
बंगाल तट पर भी होगा अभ्यास
अभ्यास का एक हिस्सा पश्चिम बंगाल में भी आयोजित किया जाएगा। कोलकाता और बंगाल तट पर इस अभ्यास की निगरानी नौसेना के अधिकारी (एनओआईसी) करेंगे। कोलकाता में स्थित भारतीय नौसेना के बेस आईएनएस नेताजी सुभाष से इसका संचालन किया जाएगा।
कमोडोर अजय यादव, जो बंगाल में नौसेना के प्रभारी अधिकारी हैं, ने बताया कि यह अभ्यास संयुक्त समन्वय केंद्र (जेसीसी) से संचालित होगा। इसमें सभी संबंधित एजेंसियों के प्रतिनिधि बेहतर समन्वय और तालमेल के लिए मिलकर काम करेंगे।
कौन-कौन सी एजेंसियां ले रही हैं हिस्सा?
इस अभ्यास में नौसेना के साथ-साथ 16 केंद्रीय और राज्य एजेंसियां भाग ले रही हैं। इनमें शामिल हैं:
: भारतीय तटरक्षक बल
: बंगाल पुलिस
: राज्य मत्स्य विभाग
: नौवहन, बंदरगाह और जलमार्ग विभाग
: भारतीय सेना और वायुसेना
: सीआईएसएफ, बीएसएफ
: सीमा शुल्क और खुफिया ब्यूरो
एनसीसी (राष्ट्रीय कैडेट कोर) भी पहली बार इस अभ्यास में भाग ले रही है।
क्यों किया जा रहा है यह अभ्यास?
‘सी विजिल’ अभ्यास की शुरुआत 2019 में हुई थी। इसका मकसद 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले जैसे खतरों से तटीय इलाकों को बचाने के लिए भारतीय तटरेखा की सुरक्षा का मूल्यांकन करना है। यह अभ्यास हर दो साल में किया जाता है।
कमोडोर अजय यादव ने बताया कि इस अभ्यास के जरिए तटीय परिसंपत्तियों की सुरक्षा को और मजबूत बनाया जाएगा। इसमें बंदरगाहों, तेल रिग, केबल लैंडिंग प्वाइंट और तटीय आबादी की सुरक्षा पर खास ध्यान दिया जाएगा।
क्या है खास?
‘सी विजिल-2024’ के जरिए:
: समुद्र से आने वाले खतरों की पहचान की जाएगी।
: तटीय सुरक्षा प्रतिक्रिया की प्रभावशीलता को परखा जाएगा।
: सुरक्षा में शामिल सभी एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा।
अंत में बता दें कि यह अभ्यास भारत की तटीय सुरक्षा को और मजबूत करने और सभी संबंधित एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह सुनिश्चित करेगा कि समुद्र से आने वाले किसी भी खतरे से भारत सुरक्षित रह सके।