Edited By Yaspal,Updated: 09 Sep, 2024 06:12 AM
मिस्र और भारतीय प्रजाति के गिद्धों के लिए प्रसिद्ध अरावली की बयाना पहाड़ियों में विश्व वन्यजीव कोष (डल्ब्यूडब्ल्यूएफ) ने लगभग 20 गिद्ध देखे हैं। पक्षी की यह प्रजाति विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है
भरतपुरः मिस्र और भारतीय प्रजाति के गिद्धों के लिए प्रसिद्ध अरावली की बयाना पहाड़ियों में विश्व वन्यजीव कोष (डल्ब्यूडब्ल्यूएफ) ने लगभग 20 गिद्ध देखे हैं। पक्षी की यह प्रजाति विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है। परियोजना के सदस्यों द्वारा देखे गए गिद्धों में ‘व्हाइट-रम्प्ड' या ‘बंगालेंसिस' गिद्ध भी शामिल हैं।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने इस साल 31 अगस्त को गिद्धों की गिनती की पहल शुरू की थी, जो एक राष्ट्रव्यापी नागरिक-विज्ञान पहल है जिसे देश में गिद्धों की तेजी से घटती संख्याकी निगरानी और संरक्षण के लिए तैयार किया गया है। यह कार्यक्रम ‘बर्ड काउंट इंडिया' के सहयोग से चलाया जा रहा है। चूहों और सांपों का सफाया करके गिद्ध पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में योगदान देते हैं। भारतीय गिद्ध भूरे रंग के शरीर, काले पंख और पीले रंग की चोंच के लिए जाने जाते हैं।
भोजन की उपलब्धता में कमी, घोंसले के स्थानों के नष्ट होने और खाई के नजदीक हलचल की वजह से इन्हें देखना दुर्लभ हो गया है। पिछले तीन वर्षों से बयाना अरावली पहाड़ में इन पक्षियों का अध्ययन कर रहे एक स्थानीय संरक्षणकर्ता के अनुसार यह क्षेत्र मिस्र और भारतीय गिद्धों के लिए जाना जाता है तथा सर्दियों में हिमालयी गिद्धों के भी देखे जाने की सूचना मिली है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में गिद्धों का प्रजनन का समय अक्टूबर में शुरू होता है तथा जोड़ा बनाने की गतिविधियां नवंबर में होती हैं।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के परियोजना अधिकारी हेमेन्द्र कुमार ने बताया, ‘‘प्रत्येक जोड़ा आमतौर पर इस अवधि के दौरान केवल एक अंडा ही देता है।'' संरक्षणकर्ता ने बताया कि गिद्धों को यहां वर्षों से देखा जा रहा है, ज्यादातर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय। उन्होंने बताया कि गिद्धों की गिनती सूर्योदय के समय की जाती है, क्योंकि कुछ गिद्ध भोजन के लिए आस-पास के क्षेत्रों में चले जाते हैं तथा कई दिनों तक वापस नहीं आते।